बुधवार, 2 जून 2010

Mothars Day

anil anup
माँ! क्या है माँ? कौन होती है माँ? कैसी होती है माँ? इन प्रश्नों के उतर हर किसी ने अपनी समझ से दिए है। कोई कहता है कि माँ एक सीप है जो अपनी संतान के लाखो रहस्य सीने में छुपा लेती है। माँ ममता की अनमोल दास्ताँ है। जो हर दिल पर अंकित है। भगवान कहता है कि माँ मेरी ओर से मूल्यवान और दुर्लभ उपहार है। इसके कदमो में स्वर्ग है। मै भी इसके आगे नत मस्तक हूँ । हर संतान को माँ की ममता नसीब है।
माँ वो है जिसने नो माह गर्भ में रखकर हमे मानव का रूप दिया। जिसने पंचतत्व से बने शरीर में जान डाली। जिसने दूध पिलाकर हमे बड़ा किया है। हमारी हर गलती पर हमे समझाया है। हमने चाहे उसे दुःख दिया पर उसने हमे हमेशा सुख दिया। हमारे दुखो को उसने अपनी खातिर मांग लिया। वो हमारी प्रथम गुरु बनी। हमे बोलना सिखाया। हमे संस्कार दिए, संसार में जीने लायक बनाया। कहानी, लोरी सुनकर हमे ज्ञान दिया। माँ की महिमा को हम शब्दों में बयान नहीं कर सकते। उसने हमे इतने उपहार दिए जिसकी गिनती मुश्किल है। हमे व्यंजन देकर खुद रुखा सुखा खाया।
जिस व्यक्ति को जीवन में माँ का प्यार मिले आशीर्वाद मिले वो किस्मत वाले होते है। माँ के बारे में लिखे तो शब्द कम पद जाते है। कितना भी लिख ले लगता है कि अभी तो कुछ लिखा ही नहीं। उसकी सहनशीलता, ममता , प्यार, दुलार, दया, तपस्या, अनुराग, वात्सल्य, स्नेह, संस्कार, के बारे में तो हम लिख ही नहीं पाए। शायद कभी लिख भी नहीं पाएंगे। क्योंकि इन शब्दों को न तो परिभाषित किया जा सकता है और न ही इनका वर्णन किया जा सकता है। माँ से जुड़े ये सारे शब्द माँ के बारे में सिर्फ एक ही बिंदु बता पते है। माँ शब्द फिर भी अनसुलझा रह जाता है। जिस शब्द की व्याख्या भगवान भी न कर सका, उस शब्द की व्याख्या करने की कोशिश हमे बेकार मालूम पड़ती है। हम तो सिर्फ उस माँ के चरणों में शत शत प्रणाम करते है। हम उसे कुछ और तो डे नहीं सकते सिर्फ मदर्स डे के रूप में अपने साल का एक दिन उसे जरुर डे सकते है। अपनी कृतज्ञता माँ को प्रकट कर सकते है। मदर्स डे पर माँ को हमारा कोटि कोटि प्रणाम। अभी भी एसा लग रहा है मानो कुछ लिखा ही नहीं। माँ के बारे में लिखने के लिए शब्द ही नहीं। असंख्य शब्दों का ज्ञाता भी माँ के बारे में लिखते समय शब्द विहीन सा हो जाता है। अंत में सिर्फ इतना ही-जिंदगी में खुशिया भर देती है माँ , हमारे ख्वाबो को हकीकत बनती है माँ, बेनूर जिंदगी कि महकती है माँ, पथरीले पथ पर चलना सिखाती है माँ |

बुधवार, 27 जनवरी 2010

कुंवारे का गाँव


अब्दुल्ला

अभी तक तो बेटी के पिता को ही अपनी लड़की के विवाह की फिक्र सताती थी मगर शिवपुरी जिले में ऐसे एक दो नहीं, बल्कि पूरे दो दर्जन से अधिक गांव हैं, जहां कुंवारे युवकों की पूरी फौज मौजूद है और इन गांवों को कुंआरों के गांव के नाम से पुकारा जाने लगा है।दरअसल इन गांवों में फ्लोराइड युक्त पानी होने के कारण लोग अस्थि विकार का शिकार हो जाते हैं। इसी वजह से आसपास के गांवों के लोग इन गांवों में अपनी बेटी ब्याहने से कतराते हैं। इन गांवों के लोग अपनी लड़कियों की शादी छोटी उम्र में करके उन्हें तो इस बीमारी से बचा लेते हैं, लेकिन सेहरा बांधने की हसरत में उनके लड़कों की उम्र ढल रही है।सूत्रों का कहना है कि फ्लोराइड युक्त पानी वाले गांवों की संख्या और भी तेजी से बढ़ रही है। फ्लोरोसिस से पीडि़त गांवों में लोग अपनी बेटियां ब्याहने से कतराते हैं और पिछले लंबे समय से यहां यह स्थिति देखी जा रही है। अब तो हालत यह है कि लोग इन गांवों को कुंआरों के गांव के नाम से भी पुकारने लगे हैं।शिवपुरी जिले के नरवर और करैरा विकासखंड अंतर्गत मौजूद इन गांवों के पानी में फ्लोरोसिस का जहर घुला हुआ है। ग्राम हथेड़ा, मिहावरा, गोकुंदा, टोडा आदि में फ्लोराइड के आधिक्य ने पानी को विषैला कर डाला है। इस विषैले पानी के सेवन से लोग अस्थि विकृति के शिकार हो रहे है।इस बीमारी की चपेट में आने वाले लोगों में जवानी में ही बुढ़ापे की झलक साफ देखने को मिलती है। दांतों की कतारें बदरंग हो जाती है और कम उम्र में ही दांत गिरने लगते हैं। इन गांवों में अपाहिजों की तादाद भी तुलनात्मक तौर पर चौंकाने वाली है।बकौल डा. डी के सिरोठिया, फ्लोरोसिस एक दफा अपना प्रभाव जमा ले तो फिर उससे निजात मिलना असंभव सा कार्य है। इसके लिए तो यही कहा जाएगा कि फ्लोरोसिस से बचाव ही इसका इलाज है। उन्होंने बताया कि फ्लोराइड की मात्रा फूलपुर, हतेड़ा आदि क्षेत्रों में तो 5 पीपीएम तक है जबकि एक से 1.5 पीपीएम तक फ्लोराइड की मात्रा पानी में मानव उपयोगार्थ स्वीकार्य है।नरवर के टुकी क्षेत्र के गोपाल यादव का कहना है कि वह दो जवान बेटियों का बाप है परंतु हतेडा, गोकुंदा आदि ग्रामों में लड़के होते हुए भी वह अपनी बेटियों की शादी इन गांवों में नहीं करेगा। उसका कहना है कि वहां उनकी बेटी की ही नहीं, उसकी भावी संतानों की भी जिंदगी खराब हो जाएगी।फ्लारोसिस की दहशत ने लड़की वालों को इस कदर अपनी जकड़ में ले रखा है कि यहां के पूरे पूरे गांव शहनाई की आवाज को तरस गए हैं। ग्राम फूलपुर के कोमलसिंह, मंशाराम, राजाराम सिंह आदि के घर जवान बेटे मौजूद हैं, जिनकी शादी की उम्र निकलती जा रही है, इनकी शादी की सभी संभावनाएं फीकी है। राजाराम निराश भाव से कहता है कि अब तो उसने रिश्तों की बाट देखना भी बंद कर दिया है।फूलपुर टोडा हथेडा, महावरा, जरावनी, गोकुंदा आदि में महिला पुरुष अनुपात बेहद असंतुलित है। यहां की बेटियों की शादी तो कम उम्र में आसानी से हो जाती है, लेकिन युवकों का दुल्हन नहीं मिल पाती।ग्रामीण हरज्ञान पाल का कहना है कि फ्लोरोसिस यहां दशकों से है, किन्तु जब से प्रचार माध्यमों ने प्रचारित किया है तभी से गांवों में कुंआरों की संख्या लगातार बढ़ने लगी हैं। फ्लोरोसिस नामक बीमारी के फैलाव का मुख्य और एक मात्र कारण इन गांवों में पानी के स्त्रोतों का फ्लोराइड प्रभावित होना है। फ्लोराइड ने लोगों के अस्थि तंत्र, तांत्रिका तंत्र और अन्य अंगों को प्रभावित कर डाला है।स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने इस त्रासदी से निपटने के लिए स्थान-स्थान पर डी फ्लोरीडेशन संयत्र स्थापित करने के अलावा नल-जल योजनाओं के जरिए दीगर स्थानों से पानी लाए जाने का प्रयास किया है। क्षेत्र के 30 से अधिक हैंडपंप फ्लोराइड की स्वीकार्य मात्र से अधिकता वाले जल की उपलब्धता के कारण बंद कर लाल रंग से चिंहित कर दिए गए हैं।रतिराम यादव कहता है कि सब कुछ किया जा रहा है परंतु गांव के बारे में जो धारणा बन चुकी है उसे बदल पाना संभव नहीं है। सरकार हमारी शादी का प्रबंध करने के लिए भी कुछ करे तो बात बने।

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

हिमालय रहेगा तभी हम रहेंगे


दिनेश पन्त

हिमालय व इसके करीब बसने वालों के समक्ष कई चुनौतियां व संकट हैं। यहां का जनजीवन, जल, जंगल, जमीन, जानवर सभी संकट के साए में हैं। अनियोजित विकास व प्राकृतिक संसाधनों की लूट के चलते हिमालय का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है जिसकी मार खुद हिमालय के साथ ही आसपास की जनता भी भुगत रही है। इस अंचल में हो रहे पर्यावरण असंतुलन ने यहां की आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक समृद्धि को भी हिलाया है। सूखा, भूकंप, अतिवृष्टि और भूस्खलन का नतीजा पर्वतीय लोग भुगत रहे हैं। स्थिर कहा जाने वाला हिमालय आज हिला हुआ है। खिसकते ग्लेशियर आज इसी के लिए खतरा हैं। यहां का हिमाच्छादित क्षेत्र सिकुड़ रहा है। भूगर्भ विशेषज्ञों के मुताबिक, 1986 तक जो क्षेत्र 85 फीसद था, वह अब मात्र 35 फीसद रह गया है। हर साल, हर बरसात में हिमालय दरकता जा रहा है यानी हर साल दर्जनों लोगों की जानें भी जा रही हैं, सम्पत्ति चौपट हो रही है और जनजीवन महीनों तक ठप रहता है। हिमालय के लगातार दरकने से सड़क दुर्घटनाओं में भी इजाफा हुआ है। सैकड़ों लोग असमय मौत के मुंह में चले जाते हैं। जिस हिमालय में कभी मच्छर नहीं थे, वहां आज मलेरिया व डेंगू के मरीज बढ़ रहे हैं। आज हिमालय बगावत पर उतर आया है। उत्तराखंड भी इन्हीं सवालों से दो-चार है। यहां के जीवन का आधार जल, जमीन, जंगल व जानवर हैं, यहीं यहां के पर्यावरण व अर्थव्यवस्था के आधार हैं। राज्य की 80 प्रतिशत आबादी ग्रामीण है। इनकी मूलभूत जरूरतें इन्हीं से जुड़ी हैं। विकास के नाम पर यहां के प्राकृतिक संसाधनों के साथ लूट के चलते पहाड़ी भागों की खेती चौपट हो रही है। रोजगार के चलते लोग पलायन कर रहे हैं। खेती को संभालने वाला मानव संसाधन भाग रहा है। उजड़ते गांव, बंजर होती जमीनें, युवाओं की कमी और बुजुर्गों की लाचारी का फायदा कुछ चालाक लोग उठा रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों का अपने हितों के लिए उपयोग हो रहा है। 65 प्रतिशत जंगलों पर स्थानीय जनता को उनके हक से वंचित करने की साजिश जारी है। हर साल जंगलों में आग लगना साजिश है, आग बुझाने के नाम पर लाखों–करोड़ों की हेराफेरी होती है। आग का सर्वाधिक नुकसान पर्यावरण व जनजीवन पर पड़ा है। आग में करोड़ों की वन संपदा नष्ट हो रही है, हर साल हजारों किलोमीटर वन क्षेत्र आग में समा रहे हैं। यह कई बीमारियां की जड़ बन गयी है। साथ ही, जानवरों के समक्ष भी संकट पैदा हो गया है। ये अब पेट भरने व रैन बसेरे की तलाश में मानव आबादी तक आ पहुंचे हैं और मानव पर हमला कर रहे हैं, जिससे अभी तक सैकड़ों लोग शिकार हो चुके हैं। इन सबके पीछे की वजह पारिस्थिकीय असंतुलन है। मैदानी क्षेत्रों को देखें, तो लगभग 42 प्रतिशत खेती संकट के साये में है। उघोगों की स्थापना के नाम पर खेती योग्य जमीन सरकार व कंपनियों की मिलीभगत से छीन रही है। हिमालय के हिस्से इन कल-कारखानों का प्रदूषण आ रहा है, तो कंपनियां जमकर मुनाफा कमा रही हैं। यानी मुनाफाखोरी चरम पर है। वनीकरण का खेल खेलकर यूकेलिप्टस जैसी पानी सोखने वाली प्रजाति को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे एक आ॓र पानी के स्रोत सूख रहे हैं, जिससे मानव के समक्ष पानी का संकट है, तो वहीं पानी के अभाव में खेत भी बंजर हो रहे हैं। कहने को तो उत्तराखंड में भरपूर पानी है, फिर भी यहां की आबादी पानी को तरस रही है। पर्यावरणीय नजरिये से अहम रहे यहां के नौले, सिमार, चाल-खाल, पोखर और तालाब के संवर्धन के बजाय ऐसी योजनाएं अमल में लायी जा रही हैं जो पानी से उसका धरातलीय नियंत्रण छीन रहे हैं। इन्हीं सब चिन्ताओं को लेकर पिछले दिनों राज्यभर में ‘नदी बचाआ॓’ अभियान चलाया और 2008 को ‘नदी वर्ष’ भी घोषित किया गया था। जंगली वनस्पतियों व भू-क्षरण को रोकने में मददगार प्रजातियों के नष्ट होने से पहाड़ दरक रहे हैं, जिसके कई कुप्रभाव सामने आ रहे हैं। छोटे कस्बों, शहरों का तमाम कचरा नदियों में समा रहा है जिससे पापनाशिनी नदियां रोग पैदा कर रही हैं। भूस्खलनों से प्राकृतिक संपदा बर्बाद हो रही है, गांव व खेत उजड़ रहे हैं। हर साल कई परिवार बेघरबार हो रहे हैं। उनके सामने रोजी-रोटी का संकट है, तो सिर छुपाने की चिंता भी। भूस्खलन के मलबे से नदी-नाले पट रहे हैं, जिसके चलते बरसात में पानी की निकासी के अभाव में जलभराव की बड़ी समस्या सामने आ रही है। उत्तराखंड से बहने वाली 14 नदियों में 220 से अधिक जल विघुत परियोजनाएं चल रही हैं, जिनसे निकलने वाला लाखों टन मलबा इनमें समा रहा है, अब ये पवित्र नदियां मैला ढो रही हैं। यहां के गाड़, गधेरे, नदियां कंपनियों के पास गिरवी रखने की बड़ी साजिश चल रही है, लेकिन पर्यावरणीय नुकसान के आकलन, जनता के पुनर्वास व भूमि के मुआवजों संबंधी मुद्दों पर सरकार चुप है। इन परियोजनाओं के बनने से यहां का ‘इको–सिस्टम’ बदल रहा है। हिमालय को बचाना ही इलाज है।

रविवार, 22 मार्च 2009

बचपन के दिन कैसे कैसे

भाई ये हैं जनाब चोतेमियां बहुत पोज देने काशुक है इन्हेंअब देखिये जैसे ही कैमरा सामने इनके आया की मचल पड़े अपनी सूरत बदलने को

कह रहे हैं की मुझे शामिल होना है एक्कार्यक्रम में जहाँ मुझे पहननी है माला

निकल पड़े हैं पहारों की तराईयों में
कहीं भी अपनी कुर्सी नही छोरते बेचारे
थोड़ी सी बात हुई की बस संजीदे बन जाते हैं......
कुछ होते ही बड़े ही मासूमियत और सहजता से गलती भी मान लेतेहैं
चस्मा अगर आपने भी पहन ली हो तो इन्हे इस बात से भी गुरेज नही की आप इन्हे जानते हैं याप्को ये जानते
ये भी एक अदा ही है इनकी.........................
रोज सुबह जब इनकी मान नमाज पढने जागती है तो इन्हें तत्काल अखबार चाहिए
कहते हैं की अगर आप जायेंगे तो हम्युं ही रार मचाएंगे
देखिये मैं झील के करीब हूँ .....
झील
मान जा मेरे भाई बहन के साथ मनुहार करते
मान गया भैया मेरा

सोमवार, 16 मार्च 2009

सोच

इस गली की शुरुआत जीवन से होती है मगर अंत का कोई निर्धारण अभी तक कोई कर नही सका है ।
यह दिल वालों की दिल्ली है या उनकी दिल्लगी....कौन करेगा इसका निर्धारण..कहीं आप तो नहीं.............!
यह रोज यूँ ही कही सो जाना चाहता है, कभी यहाँ तो कभी वहाँ कुछ नहीं मांगता किसी से वह तो माँगता है बस अपने रुहुल कुद्दूस से लेकिन हम अपने पास कहाँ फटकने देते हैं उसे क्योंकि हमें डर है न कि कहीं यह मेरा हाल न पूछ ले....!





गुरुवार, 12 मार्च 2009

व्यक्तित्व

मेड़ता की पहचान है अमन की आवाज
जहां मीरां की वजह से मेडता विश्व विख्यात है वहीं यहां के जाये-जन्में निर्माता-निदेशक के.सी. बोकाडिया ने देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई। इसी कडी में मेडता के रहवासी एस अमन ने अपनी जादुई आवाज से देश भर में अपनी पहचान स्थापित की है। हर मंच के माध्यम से अमन का संदेश आम जन तक पहुंचाना अमन के लिए एक पवित्र मिशन की तरह है।
जिस तरह सोना आग में जलकर भी अपनी कीमत नहीं खोता है बल्कि निखर कर कु न्दन बन जाता है। ठीक उसी तरह प्रतिभाएं विपरीत हालातों से जूझते हुऐ निखरकर संवरती चली जाती है। मरूधरा राजस्थान की कई प्रतिभाओं ने राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित की है। उसी में से एक नाम एंकर एस. अमन का भी है। उनकी अपनी एक अलहदा पहचान है। ईश्वर प्रदत अपनी प्रभावी आवाज के माध्यम से अमन ने अपने नाम को सार्थक करते हुए देश के कोने-कोने में सैंकडों कार्यक्रमों के जरिए लाखों लोगों तक अमन और प्रेम का संदेश पहुंचाया है। सर्व धर्म मंच पर अमन ने अपनी उच्च स्तरीय प्रस्तुतियां दी है। अपनी दिलकश मंच संचालन शैली एवं दोस्ताना व्यवहार की बदौलत लोकप्रिय है। भूमिजा कल्चरल सोसायटी जयपुर की और से अमन अंKC Bokadia with Anchor S Amanलकरण से इन्हें विभूषित किया गया। वही मरूधर केसरी संस्थान हैदराबाद ,नोखा युवा संस्थान नोखा मण्डी जनजागरण प्रवासी संघ भायन्दर (मुम्बई) रणकेश्वर संस्थान बरनाला पंजाब, पर्ल्स ग्रुप कोटा, मारवाडी संगठन गोवाहाटी जैसी दर्जनों सस्थाओं द्वारा प्रतिभावान अमन पुरस्कृत हो चुके सांस्कृतिक कार्यक्रमो के साथ-साथ अमन को बचपन से लेखन का विशेष शौक रहा है। 6-7 वर्षो तक इन्होंने शब्बीर ताज के नाम से देश भर की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं फिल्म लेखन किया है। इनक ी लिखी गजले, कविताएं एवं आलेख समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे है। अमन न केवल एक बेहतरीन एंकर अपितु एक अच्छे कलमकार एवं भावुक शायर भी है इन्होंने जयपुर दुरदर्शन पर प्रसारित हो चुके सीरियल जीण माता में अभिनय भी किया है। अमन की जन्म स्थली सोजत सिटी है करीबन 2॰ वर्ष पूर्व अपने ननिहाल मेडता में बस गए अमन मेडता को अपनी कर्म भूमि मानते है। उनको कहना है कि उन्हें जो कुछ भी मिला मेडता की धरती से मिला है।

राजस्थान के सूर सागर

राजस्थान के सूर सागर का पुराना वैभव लौटने लगा है
बीकानेर में कभी गंदे पानी व कीचड से भरा रह कर शहर के नासूर के रूप में प्रतिष्ठा पा चुके ऐतिहासिक जूनागढ किले के पास बने सूर सागर का पुराना वैभव लोटने लगा है। स्वाधीनता दिवस 2008 तक यह तालाब रमणीक व पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो जाएगा। इसके लिए कार्य जोर शोर से चल रहा है। तालाब के समस्त कीचड को निकाल कर सफाई की गई है तथा सीढयों व बीकानेरी शैली की लाल पत्थर की पाषाण कला के अनुसार चार दीवारी का निर्माण कार्य तीव्र गति से चल रहा है।

मुख्यमंत्री श्रीमती वसुधंरा राजे की घोषणा के अनुसार इस तालाब के पुराने वैभव को लौटते देख अभी से ही स्थानीय व बाहर के लोग नियमित निहारते रहते है। तालाब के स्वच्छ जल के जलाशय बनने से आस पास के मोहल्लों के लोगों को भी बदबू की समस्या से निजात मिलेगी तथा पर्यटकों को सकून मिलेगा।
आर.यू.आई.डी.पी. के तत्वावधान में चल रहे तालाब के जीर्णोंद्धार तथा विकास कार्य को महामहिम राज्यपाल एस.के.सिंह, मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे भी दो बार देख चुकी है। जिला प्रशासन भी पूरी मुस्तैदी से इस तालाब के सौन्दर्यकरण के कार्य को करवा रहा है।
शहर की घनी आबादी में होने व इस तालाब की आगोर में लोगों के बसने से इसमें गंदा पानी आने लग गया। रियासत काल में यह रमणीक स्थल था तथा उसमें वर्षा का जल एकत्रित किया जाता था। पानी का उपयोग नागरिकों के दैनिक उपयोग एवं बिजली उत्पादन के लिए किया जाता था।
मुख्यमंत्री श्रीमती राजे के निर्देशों की पालना में आर.यू.आई.डी.पी. ने सूरसागर को उसे पुराने ऐतिहासिक स्वरूप में लाने के लिए प्रयास शुरू किये और सभी प्रकार के डिजाइन, ड्राईंग, फिजीबिलिटी रिपोर्ट, टेण्डर डॉक्यूमेंट आदि बनवाए। अभिलेख विभाग, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, सार्वजनिक निर्माण विभाग तथा महाराजा राय सिंह ट्रस्ट के पदाधिकारियों से संफ कर सन् 1922 से 1939 तक के छाया चित्र प्राप्त किए तथा कार्य प्रारंभ किया। इसके बाद ही महाराजा गंगा सिंह के समय में इमारतों में जैसी पत्थरों की रेलिंग लगाई गयी थी वैसी ही सूरसागर के किनारे पर लगाई जा रही है।
राजस्थान नगरीय आधारभूत विकास परियोजना (आर.यू.आई.डी.पी.) के अधीक्षण अभियंता के अनुसार सूरसागर को रमणीक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए लगभग छह करोड रुपये का प्रावधान रखा गया है। तालाब काकाम पूरा होने से जूनागढ,मंदिर,पार्क,फूड प्लाजा तथा मनोरंजन के लिए नाव,तैरता फव्वारा,लाइटिंग नागरिकों एवं सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहेगा। इनमें सूरसागर को भरने के लिए ट्यूब वेल का निर्माण, सूरसागर में से सीवर लाइन को हटाने तथा अन्य रास्ते पर सीवर लाइन का निर्माण कर पूर्व सिस्टम को जोडने, सूरसागर में से एस्केप चैनल को हटाने तथा अन्य रास्ते से ड्रेनेज का प्रबंध करना, सूरसागर में 50 सालों से ज्यादा समय से जमा गंदगी व सिल्ट को निकालने तथा पानी के रिसाव को रोकने के लिए लाइनिंग के कार्य, सूरसागर में ओवर फलो एवं रीसरक्यूलेशन व्यवस्था का निर्माण करने, गंदे पानी के सूरसागर में प्रवेश को समाप्त कर नई व्यवस्था से सीवर एवं ड्रेन में जोडने, सूरसागर के चारों ओर पत्थर की रैलिंग एवं सौन्दर्यकरण का कार्य, के बाद सूरसागर में फव्वारे लगाने एवं नाव चलाने आदि कार्य द्रुतगति से किया जा रहा है। शहर के पांच ट्यूबवैल के पानी से इस तालाब में 50 हजार क्यूबिक मीटर पानी से भरा जायेगा। जूनागढ के सामने तथा पम्पिंग हाउस के पास चौपाटी की तर्ज पर खुला स्थान रखा जायेगा। जहां खाने-पीने की सुविधा सुलभ होगी। तालाब में फलोटिंग फाउंटेन,एयर ब्लोयर तथा चारों तरफ लाइटिंग से साजसज्जा का काम किया जाना है।
प्रथम चरण में सूरसागर के पास कलवर्ट 11 से 12 तक डायवर्सन चैलन व सीवर लाइन का ट्रेन्चलेस विधि से निर्माण कार्य पर 197.20 लाख, सूरसागर से सिल्ट निकाल कर स्वच्छ झील बनाने के कार्य पर 315.74 लाख तथा सूर सागर झील के पुननिर्माण एवं सौन्दर्यकरण कार्य पर 96.52 लाख रुपये प्रस्तावित किए गए है।
सूरसागर के सौन्दर्यकरण के कार्य की बीकानेर के हर धर्म सम्प्रदाय तथा हर तबके के लोगों ने दिल खोलकर तारीफ की है। इतनी तारीफ बीकानेर के किसी विकास कार्य की नहीं हुई जितनी इस तालाब के कार्य के दौरान हुई है। लोग इस तालाब के रमणीक स्वरूप को देखने को बेताब है।

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समाज की कट्टरता और पौराणिक थोथेपन के विरुध्ध संघर्षरत हर पल पर हैरत और हर जगह पंहुच की परिपाटी ने अवरुद्ध कर दिया है कुछ करने को. करूँ तो किसे कहूं ,कौन सुनकर सबको बतायेगा, अब तो कलम भी बगैर पैरवी के स्याही नहीं उगलता तो फिर कैसे संघर्ष को जगजाहिर करूँ.