बुधवार, 2 जून 2010

Mothars Day

anil anup
माँ! क्या है माँ? कौन होती है माँ? कैसी होती है माँ? इन प्रश्नों के उतर हर किसी ने अपनी समझ से दिए है। कोई कहता है कि माँ एक सीप है जो अपनी संतान के लाखो रहस्य सीने में छुपा लेती है। माँ ममता की अनमोल दास्ताँ है। जो हर दिल पर अंकित है। भगवान कहता है कि माँ मेरी ओर से मूल्यवान और दुर्लभ उपहार है। इसके कदमो में स्वर्ग है। मै भी इसके आगे नत मस्तक हूँ । हर संतान को माँ की ममता नसीब है।
माँ वो है जिसने नो माह गर्भ में रखकर हमे मानव का रूप दिया। जिसने पंचतत्व से बने शरीर में जान डाली। जिसने दूध पिलाकर हमे बड़ा किया है। हमारी हर गलती पर हमे समझाया है। हमने चाहे उसे दुःख दिया पर उसने हमे हमेशा सुख दिया। हमारे दुखो को उसने अपनी खातिर मांग लिया। वो हमारी प्रथम गुरु बनी। हमे बोलना सिखाया। हमे संस्कार दिए, संसार में जीने लायक बनाया। कहानी, लोरी सुनकर हमे ज्ञान दिया। माँ की महिमा को हम शब्दों में बयान नहीं कर सकते। उसने हमे इतने उपहार दिए जिसकी गिनती मुश्किल है। हमे व्यंजन देकर खुद रुखा सुखा खाया।
जिस व्यक्ति को जीवन में माँ का प्यार मिले आशीर्वाद मिले वो किस्मत वाले होते है। माँ के बारे में लिखे तो शब्द कम पद जाते है। कितना भी लिख ले लगता है कि अभी तो कुछ लिखा ही नहीं। उसकी सहनशीलता, ममता , प्यार, दुलार, दया, तपस्या, अनुराग, वात्सल्य, स्नेह, संस्कार, के बारे में तो हम लिख ही नहीं पाए। शायद कभी लिख भी नहीं पाएंगे। क्योंकि इन शब्दों को न तो परिभाषित किया जा सकता है और न ही इनका वर्णन किया जा सकता है। माँ से जुड़े ये सारे शब्द माँ के बारे में सिर्फ एक ही बिंदु बता पते है। माँ शब्द फिर भी अनसुलझा रह जाता है। जिस शब्द की व्याख्या भगवान भी न कर सका, उस शब्द की व्याख्या करने की कोशिश हमे बेकार मालूम पड़ती है। हम तो सिर्फ उस माँ के चरणों में शत शत प्रणाम करते है। हम उसे कुछ और तो डे नहीं सकते सिर्फ मदर्स डे के रूप में अपने साल का एक दिन उसे जरुर डे सकते है। अपनी कृतज्ञता माँ को प्रकट कर सकते है। मदर्स डे पर माँ को हमारा कोटि कोटि प्रणाम। अभी भी एसा लग रहा है मानो कुछ लिखा ही नहीं। माँ के बारे में लिखने के लिए शब्द ही नहीं। असंख्य शब्दों का ज्ञाता भी माँ के बारे में लिखते समय शब्द विहीन सा हो जाता है। अंत में सिर्फ इतना ही-जिंदगी में खुशिया भर देती है माँ , हमारे ख्वाबो को हकीकत बनती है माँ, बेनूर जिंदगी कि महकती है माँ, पथरीले पथ पर चलना सिखाती है माँ |

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समाज की कट्टरता और पौराणिक थोथेपन के विरुध्ध संघर्षरत हर पल पर हैरत और हर जगह पंहुच की परिपाटी ने अवरुद्ध कर दिया है कुछ करने को. करूँ तो किसे कहूं ,कौन सुनकर सबको बतायेगा, अब तो कलम भी बगैर पैरवी के स्याही नहीं उगलता तो फिर कैसे संघर्ष को जगजाहिर करूँ.