रविवार, 22 मार्च 2009

बचपन के दिन कैसे कैसे

भाई ये हैं जनाब चोतेमियां बहुत पोज देने काशुक है इन्हेंअब देखिये जैसे ही कैमरा सामने इनके आया की मचल पड़े अपनी सूरत बदलने को

कह रहे हैं की मुझे शामिल होना है एक्कार्यक्रम में जहाँ मुझे पहननी है माला

निकल पड़े हैं पहारों की तराईयों में
कहीं भी अपनी कुर्सी नही छोरते बेचारे
थोड़ी सी बात हुई की बस संजीदे बन जाते हैं......
कुछ होते ही बड़े ही मासूमियत और सहजता से गलती भी मान लेतेहैं
चस्मा अगर आपने भी पहन ली हो तो इन्हे इस बात से भी गुरेज नही की आप इन्हे जानते हैं याप्को ये जानते
ये भी एक अदा ही है इनकी.........................
रोज सुबह जब इनकी मान नमाज पढने जागती है तो इन्हें तत्काल अखबार चाहिए
कहते हैं की अगर आप जायेंगे तो हम्युं ही रार मचाएंगे
देखिये मैं झील के करीब हूँ .....
झील
मान जा मेरे भाई बहन के साथ मनुहार करते
मान गया भैया मेरा

सोमवार, 16 मार्च 2009

सोच

इस गली की शुरुआत जीवन से होती है मगर अंत का कोई निर्धारण अभी तक कोई कर नही सका है ।
यह दिल वालों की दिल्ली है या उनकी दिल्लगी....कौन करेगा इसका निर्धारण..कहीं आप तो नहीं.............!
यह रोज यूँ ही कही सो जाना चाहता है, कभी यहाँ तो कभी वहाँ कुछ नहीं मांगता किसी से वह तो माँगता है बस अपने रुहुल कुद्दूस से लेकिन हम अपने पास कहाँ फटकने देते हैं उसे क्योंकि हमें डर है न कि कहीं यह मेरा हाल न पूछ ले....!





गुरुवार, 12 मार्च 2009

व्यक्तित्व

मेड़ता की पहचान है अमन की आवाज
जहां मीरां की वजह से मेडता विश्व विख्यात है वहीं यहां के जाये-जन्में निर्माता-निदेशक के.सी. बोकाडिया ने देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई। इसी कडी में मेडता के रहवासी एस अमन ने अपनी जादुई आवाज से देश भर में अपनी पहचान स्थापित की है। हर मंच के माध्यम से अमन का संदेश आम जन तक पहुंचाना अमन के लिए एक पवित्र मिशन की तरह है।
जिस तरह सोना आग में जलकर भी अपनी कीमत नहीं खोता है बल्कि निखर कर कु न्दन बन जाता है। ठीक उसी तरह प्रतिभाएं विपरीत हालातों से जूझते हुऐ निखरकर संवरती चली जाती है। मरूधरा राजस्थान की कई प्रतिभाओं ने राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित की है। उसी में से एक नाम एंकर एस. अमन का भी है। उनकी अपनी एक अलहदा पहचान है। ईश्वर प्रदत अपनी प्रभावी आवाज के माध्यम से अमन ने अपने नाम को सार्थक करते हुए देश के कोने-कोने में सैंकडों कार्यक्रमों के जरिए लाखों लोगों तक अमन और प्रेम का संदेश पहुंचाया है। सर्व धर्म मंच पर अमन ने अपनी उच्च स्तरीय प्रस्तुतियां दी है। अपनी दिलकश मंच संचालन शैली एवं दोस्ताना व्यवहार की बदौलत लोकप्रिय है। भूमिजा कल्चरल सोसायटी जयपुर की और से अमन अंKC Bokadia with Anchor S Amanलकरण से इन्हें विभूषित किया गया। वही मरूधर केसरी संस्थान हैदराबाद ,नोखा युवा संस्थान नोखा मण्डी जनजागरण प्रवासी संघ भायन्दर (मुम्बई) रणकेश्वर संस्थान बरनाला पंजाब, पर्ल्स ग्रुप कोटा, मारवाडी संगठन गोवाहाटी जैसी दर्जनों सस्थाओं द्वारा प्रतिभावान अमन पुरस्कृत हो चुके सांस्कृतिक कार्यक्रमो के साथ-साथ अमन को बचपन से लेखन का विशेष शौक रहा है। 6-7 वर्षो तक इन्होंने शब्बीर ताज के नाम से देश भर की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं फिल्म लेखन किया है। इनक ी लिखी गजले, कविताएं एवं आलेख समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे है। अमन न केवल एक बेहतरीन एंकर अपितु एक अच्छे कलमकार एवं भावुक शायर भी है इन्होंने जयपुर दुरदर्शन पर प्रसारित हो चुके सीरियल जीण माता में अभिनय भी किया है। अमन की जन्म स्थली सोजत सिटी है करीबन 2॰ वर्ष पूर्व अपने ननिहाल मेडता में बस गए अमन मेडता को अपनी कर्म भूमि मानते है। उनको कहना है कि उन्हें जो कुछ भी मिला मेडता की धरती से मिला है।

राजस्थान के सूर सागर

राजस्थान के सूर सागर का पुराना वैभव लौटने लगा है
बीकानेर में कभी गंदे पानी व कीचड से भरा रह कर शहर के नासूर के रूप में प्रतिष्ठा पा चुके ऐतिहासिक जूनागढ किले के पास बने सूर सागर का पुराना वैभव लोटने लगा है। स्वाधीनता दिवस 2008 तक यह तालाब रमणीक व पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो जाएगा। इसके लिए कार्य जोर शोर से चल रहा है। तालाब के समस्त कीचड को निकाल कर सफाई की गई है तथा सीढयों व बीकानेरी शैली की लाल पत्थर की पाषाण कला के अनुसार चार दीवारी का निर्माण कार्य तीव्र गति से चल रहा है।

मुख्यमंत्री श्रीमती वसुधंरा राजे की घोषणा के अनुसार इस तालाब के पुराने वैभव को लौटते देख अभी से ही स्थानीय व बाहर के लोग नियमित निहारते रहते है। तालाब के स्वच्छ जल के जलाशय बनने से आस पास के मोहल्लों के लोगों को भी बदबू की समस्या से निजात मिलेगी तथा पर्यटकों को सकून मिलेगा।
आर.यू.आई.डी.पी. के तत्वावधान में चल रहे तालाब के जीर्णोंद्धार तथा विकास कार्य को महामहिम राज्यपाल एस.के.सिंह, मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे भी दो बार देख चुकी है। जिला प्रशासन भी पूरी मुस्तैदी से इस तालाब के सौन्दर्यकरण के कार्य को करवा रहा है।
शहर की घनी आबादी में होने व इस तालाब की आगोर में लोगों के बसने से इसमें गंदा पानी आने लग गया। रियासत काल में यह रमणीक स्थल था तथा उसमें वर्षा का जल एकत्रित किया जाता था। पानी का उपयोग नागरिकों के दैनिक उपयोग एवं बिजली उत्पादन के लिए किया जाता था।
मुख्यमंत्री श्रीमती राजे के निर्देशों की पालना में आर.यू.आई.डी.पी. ने सूरसागर को उसे पुराने ऐतिहासिक स्वरूप में लाने के लिए प्रयास शुरू किये और सभी प्रकार के डिजाइन, ड्राईंग, फिजीबिलिटी रिपोर्ट, टेण्डर डॉक्यूमेंट आदि बनवाए। अभिलेख विभाग, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, सार्वजनिक निर्माण विभाग तथा महाराजा राय सिंह ट्रस्ट के पदाधिकारियों से संफ कर सन् 1922 से 1939 तक के छाया चित्र प्राप्त किए तथा कार्य प्रारंभ किया। इसके बाद ही महाराजा गंगा सिंह के समय में इमारतों में जैसी पत्थरों की रेलिंग लगाई गयी थी वैसी ही सूरसागर के किनारे पर लगाई जा रही है।
राजस्थान नगरीय आधारभूत विकास परियोजना (आर.यू.आई.डी.पी.) के अधीक्षण अभियंता के अनुसार सूरसागर को रमणीक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए लगभग छह करोड रुपये का प्रावधान रखा गया है। तालाब काकाम पूरा होने से जूनागढ,मंदिर,पार्क,फूड प्लाजा तथा मनोरंजन के लिए नाव,तैरता फव्वारा,लाइटिंग नागरिकों एवं सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहेगा। इनमें सूरसागर को भरने के लिए ट्यूब वेल का निर्माण, सूरसागर में से सीवर लाइन को हटाने तथा अन्य रास्ते पर सीवर लाइन का निर्माण कर पूर्व सिस्टम को जोडने, सूरसागर में से एस्केप चैनल को हटाने तथा अन्य रास्ते से ड्रेनेज का प्रबंध करना, सूरसागर में 50 सालों से ज्यादा समय से जमा गंदगी व सिल्ट को निकालने तथा पानी के रिसाव को रोकने के लिए लाइनिंग के कार्य, सूरसागर में ओवर फलो एवं रीसरक्यूलेशन व्यवस्था का निर्माण करने, गंदे पानी के सूरसागर में प्रवेश को समाप्त कर नई व्यवस्था से सीवर एवं ड्रेन में जोडने, सूरसागर के चारों ओर पत्थर की रैलिंग एवं सौन्दर्यकरण का कार्य, के बाद सूरसागर में फव्वारे लगाने एवं नाव चलाने आदि कार्य द्रुतगति से किया जा रहा है। शहर के पांच ट्यूबवैल के पानी से इस तालाब में 50 हजार क्यूबिक मीटर पानी से भरा जायेगा। जूनागढ के सामने तथा पम्पिंग हाउस के पास चौपाटी की तर्ज पर खुला स्थान रखा जायेगा। जहां खाने-पीने की सुविधा सुलभ होगी। तालाब में फलोटिंग फाउंटेन,एयर ब्लोयर तथा चारों तरफ लाइटिंग से साजसज्जा का काम किया जाना है।
प्रथम चरण में सूरसागर के पास कलवर्ट 11 से 12 तक डायवर्सन चैलन व सीवर लाइन का ट्रेन्चलेस विधि से निर्माण कार्य पर 197.20 लाख, सूरसागर से सिल्ट निकाल कर स्वच्छ झील बनाने के कार्य पर 315.74 लाख तथा सूर सागर झील के पुननिर्माण एवं सौन्दर्यकरण कार्य पर 96.52 लाख रुपये प्रस्तावित किए गए है।
सूरसागर के सौन्दर्यकरण के कार्य की बीकानेर के हर धर्म सम्प्रदाय तथा हर तबके के लोगों ने दिल खोलकर तारीफ की है। इतनी तारीफ बीकानेर के किसी विकास कार्य की नहीं हुई जितनी इस तालाब के कार्य के दौरान हुई है। लोग इस तालाब के रमणीक स्वरूप को देखने को बेताब है।

बुधवार, 4 मार्च 2009

कौम को तकसीम कर दिया

अब्दुल्ला

ढोंग और ढकोंसला को धर्म का नाम दे कर उनको क़ौमियत में तकसीम कर दिया गया है। हिदू धर्म, इस्लाम, धर्म, ईसाई धर्म वगैरह , जब कि धर्म सिर्फ़ एक होता है किसी वस्तु, जीव या व्यक्ति का सद गुण -जैसे काँटे (तराजू) का धर्म (सदगुण) उस की सच्ची तोल, फूल का धर्म खुशबू, साबुन का धर्म साफ़ करना और इंसान का धर्म इंसानियत। इसी धर्म का अरबी पर्याय ईमान है जिस पर इस्लाम ने कब्ज़ा कर लिया है। इस्लाम अभी चौदह सौ साल पहले आया, ईमान और धर्म इंसान की पैदाइश के साथ साथ हजारों सालों से काएम हैं। इंसान इर्तेक़ाइ मरहलों में है, ये रचना-काल समाप्त हो, ढोंग और ढ्कोंसलों का कूड़ा इसकी राह से दूर हो जाए तो ये मानव से महा मानव बन जाएगाखास कर मुस्लिम समाज जो पाताल में जा रहा है, इस को जगाना ज़रूरी है क्यूँ कि इसी में से मैं वाबिस्ता हूँ और यह ख़ुद अपना दुश्मन है। कोई इसका दोस्त नही । इस को तअस्सुब या जानिब दारी न समझा जाए, बल्कि कमज़ोर की मदद है ये।
हम बहैसियत मुसलमान इस वक्त अपने मुखालिफों के नरगे में हैं, ख्वाह वह रूए ज़मीन का कोई भी टुकडा क्यों न हो, मुस्लिम एक्तेदार में हो, या गैर मुस्लिम एक्तेदार में हो, छोटा सा गाँव हो, कस्बा हो, छोटा या बड़ा शहर हो, हर जगह मुसलमान अपने आप को गैर महफूज़ समझता है, खास कर वह मुसलमान जो वक्त के मुताबक बेहतर और बेदार समाजी ज़िन्दगी जीने का हौसला रखता है. उस के लिए दूर दूर तक खारजी और दाखली दोनों तौर पर रोड़े बिखरे हुए हैं. खारजी तौर पर देखें तो दुन्या इन मुसलमानों के लिए कोई नर्म गोशा इस लिए नहीं रखती की इन का माजी का अईना इन्तेहाई दागदार है, और दाखली सूरते हल ऐसी है कि ख़ुद इनकी ही माहोल्याती तारीकी इन्हें आठवीं सदी में ले जाना चाहती है. हर हस्सास मुसलमान अपने ऊपर मंडराते खतरे को अच्छी तरह महसूस कर रहा है. वह अपने अन्दर छिपी हुई इस की वज़ह को भी अच्छी तरह जानता बूझता है. बहुत से सवाल वह ख़ुद से करता है, अपने को लाजवाब पाता है. ख़ुद से नज़र नहीं मिला पाता, जब कि वह जानता है हल उसके सामने अपनी उंगली थमाने को तय्यार खड़ा है क्यूंकि उसके समाज के बंधन उसके पैर में बेडियाँ डाले हुए हैं. वह शुतुर मुर्ग कि तरह सर छिपाने के हल को क्यूं अपनाए हूए है? वह अपनी बका और फ़ना को किस के हवाले किए हुए है?
हमें चाहिए हम आँखें खोलें, सच्चाइयों का सामना करते हुए उनको तस्लीम कर लें. याद रखें सच्चाई को तस्लीम करना ही सब से बड़ी अन्दर कि बहादुरी है. दीन के नाम पर क़दामातों पर डटे रहना जहालत है. कल की माफौकुल-फितरत बातें और दरोग बाफियाँ आज के साइंस्तिफिक हल २+२=४ कि तरह सच नहीं हैं जदीद तरीन सदाक़तें अपने साथ नई क़द्रें लाई हैं. इन में शहादतें और पाकीज़गी है. वह माजी के मुजरिमों का बदला इनकी नस्लों से नहीं लेतें. वह काफिर की औरतों और बच्चो को मिन जुमला काफिर करार नहीं गरदान्तीं . वह तो काफिर और मोमिन का इम्तियाज़ भी नहीं करतीं. इन में इन्तेक़ाम का कोई खुदाई हुक्म भी नहीं है, न इन का कोई मुन्तक़िम खुदा है. हमें इन जदीद सदाकतों और पाकीज़ा क़दरों को तस्लीम कर लेने की ज़रूरत है. हमें तौबा इन के एहसासात के सामने आकर करना चाहिए और और हम तौबा जाने कहाँ कहाँ करते फिर रहे हैं यह नई सदाकतें, यह यह पाक क़द्रें किसी पैगम्बर की ईजाद नहीं, किसी तबके की नहीं, किसी फिरके की नहीं, किसी खित्ते की नहीं, हजारों सालों से इंसानियत के शजर के फूल की खुशबू से यह वजूद में आई है. बिला शको शुबहा इन को हर्फे-आखीर और आखिरी निज़ाम कहा जा सकता है. ये रोज़ बरोज़ और ख़ुद बखुद सजती और संवारती चली जाएंगी. इन का कोई अल्लाह नहीं होगा, कोई पैगम्बर नहीं होगा, कोई जिब्रील नहीं होगा, न कोई शैतान ये मज़हबे-इंसानियत दुन्या का आखरी मज़हब होगा, आखरी निजाम होगा. अगर सब से पहले मुसलमान इसे कुबूल करें तो इन के लिए सब से बेहतर रास्ता होगा. आज दो राहे पर खड़ी काम के लिए सही हल. दुन्या की कौमों में सफ़े-अव्वल में आने का एक सुनहरा मौक़ा और शाट कट रस्ते यही है कि वो अपनी अहमियत और खासियत को अपने नबी के बताये हुए तौर तरीकों के समेत महसूस करें उनकी पहचान अपने आप बंटी चली जायेगी

सोमवार, 2 मार्च 2009

film

भोले-शंकर : बिहार के बाद मुंबई की बारी

बिहार में शानदार कामयाबी के बाद पत्रकार से फिल्म निर्देशक बने पंकज शुक्ल की फिल्म भोले शंकर अब 20 फरवरी को मुंबई में रिलीज़ होने जा रही है। सुपर स्टार मिथुन चक्रवर्ती की ये पहली भोजपुरी फिल्म बिहार, नेपाल और दूसरे भोजपुरी भाषी क्षेत्रों में पहले ही कामयाबी के सौ दिन पूरे कर चुकी है। मुंबई में ये फिल्म दस सिनेमाघरों में एक साथ रिलीज़ होने जा रही है और इसकी एडवांस बुकिंग को लेकर दर्शकों की उत्सुकता को देखते हुए लग रहा है कि ये फिल्म मुंबई में भी कामयाबी का इतिहास दोहराएगी।
मिथुन चक्रवर्ती, मनोज तिवारी, मोनालिसा, राजेश विवेक, राघवेंद्र मुद्गल और मास्टर शिवेंदु स्टारर फिल्म भोले शंकर एक ऐसे इंसान की कहानी है, जो पूरब के एक गांव से नौकरी की तलाश में मुंबई आता है और अपने हुनर के ज़रिए नाम कमाता है। फिल्म की शूटिंग उत्तर प्रदेश और मुंबई के अलग अलग इलाकों में की गई है। इस फिल्म में मशहूर पार्श्व गायक शैलेंद्र सिंह की 20 साल बाद फिल्मों में वापसी हो रही है।
मिथुन चक्रवर्ती ने फिल्म की मुंबई रिलीज़ से पहले एक खास बातचीत में बताया कि भोले शंकर एक ऐसी फिल्म है, जिसे पूरे परिवार के साथ बैठकर देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि भोजपुरी फिल्मों का स्तर बढ़ाने के लिए भोले शंकर ने अहम भूमिका निभाई है और फिल्म की बिहार और दूसरे भोजपुरी क्षेत्रों में कामयाबी ने ये साबित कर दिया है कि ये साफ सुथरी भोजपुरी फिल्मों के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी। वहीं, फिल्म के दूसरे हीरो मनोज तिवारी जो इन दिनों लोक सभा चुनाव उम्मीदवार बनने के बाद प्रचार अभियान पर निकले हैं, ने कहा कि मुंबई के भोजपुरी दर्शक अरसे से इस फिल्म के इंतज़ार में थे। उन्होंने कहा कि भोले शंकर की कामयाबी मुंबई में भी दोहराई जाएगी। मनोज तिवारी ने भोले शंकर के संगीत को फिल्म की सबसे बड़ी खूबी बताया।
संगीतकार धनंजय मिश्रा और गीतकार बिपिन बहार के गीतों से सजी फिल्म भोले शंकर में सारेगामा के फाइनलिस्ट राजा हसन, मौली दवे, पूनम यादव और उज्जयिनी ने भी गीत गाए हैं। भोजपुरी फिल्मों की नंबर वन हीरोइन मोनालिसा ने बिहार के सासाराम से फोन पर बताया कि फिल्म भोले शंकर उनके करियर की बेहतरीन फिल्मों में से है और ये उन चुनिंदा फिल्मों में से है जिसमें नायिका को केवल खूबसूरती के लिए पेश नहीं किया गया है। मोनालिसा ने कहा कि फिल्म में उनका किरदार ग्लैमरस होने के साथ साथ कहानी के लिहाज से भी काफी अहम है और फिल्म निर्देशक पंकज शुक्ल ने इस किरदार के ज़रिए भोजपुरी फिल्मों की नायिकाओं को एक नई पहचान देने की कोशिश की है।
फिल्म भोले शंकर के निर्देशक पंकज शुक्ल ने इस मौके पर फिल्म के निर्माता गुलशन भाटिया का आभार जताया और कहा कि ये उन्हीं के सहयोग का नतीजा है कि भोले शंकर बॉक्स ऑफिस पर इतनी कामयाबी पा सकी। उन्होंने मिथुन चक्रवर्ती को यूपी, बिहार और मुंबई में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय कलाकार बताते हुए कहा कि मिथुन चक्रवर्ती ने फिल्म भोले शंकर में दोस्ती निभाने के लिए काम किया और दर्जनों भोजपुरी फिल्मों के ऑफर ठुकराते हुए फिल्म भोले शंकर के लिए उन्होंने जो सहयोग दिया वो उनकी दरियादिली का ही सबूत है।
[साभार pradhaanjee dat com]

शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009

ख़ास बात

एक ख़बर-जबलपुर के निकट एक गाँव में एक दंपत्ति पर उसी गाँव के दबंगों ने हमला किया.उन्हें जिन्दा जलाने का प्रयास किया गया .अधजली हालत में जब पत्नी घर से निकलकर भागी तो आतताइयों ने उसे पकड़कर घटनास्थल के ही निकट स्थित चौराहे पर उसके साथ मर्यादाभंग का घिनौना खेल खेला.हमेशा की तरह दुर्भाग्य यह की अडोसी- पड़ोसी सभी अपने -अपने घरों में दुबककर जली हुई महिला और उसके पति की दर्दभरी चीखें सुनते रहे.इस दंपत्ति का अपराध यह था की पति ने दबंगों के ख़िलाफ़ चुनाओ लड़ने का दुस्साहस दिखाया था.

दूसरी ख़बर-पच्चीस साल का पति और बाईस साल की पत्नी .दो बच्चे -एक की उम्र पाँच साल दूसरा सवा साल का.गृह कलह के चलते दोनों किसी भी कीमत पर एक दूसरे के साथ रहने को तैयार नहीं .मामला पहुँचा जबलपुर के परिवार परामर्श केन्द्र में.लाख समझाइश के बावजूद दोनों एक दूसरे से अलग रहने की जिद पर अडे रहे .अंततः फ़ैसला हुआ.अब बड़ा बेटा पति के साथ रहेगा और छोटा माँ के साथ।

तीसरी ख़बर-दो साल तक बेटी से इश्क लड़ाने वाला आशिक अपनी होने वाली सास को लेकर भाग गया. बेटी ने थाने में रिपोर्ट लिखाई है की उसके प्रेमी और माँ के ख़िलाफ़ कार्यवाही की जाए.रिपोर्ट में बेटी ने यह भी लिखवाया है की उसका भूतपूर्व आशिक उसकी माँ के साथ शादी रचाकर बिलासपुर में रह रहा है.लड़की का दर्द यह है कि अब वह अकेली रह गई है.उसका न पिता है और न अन्य कोई भाई अथवा बहन।

मेरी आवाज़-क्या हम इंसानों की बस्ती में रह रहे हैं?क्या इन तीनों घटनाओं में पीडितों को न्याय मिल पायेगा.पहली घटना में आतताई दबंगों को आज तक गिरफ्तार नहीं किया गया है.पुलिस वालों का घिसा पिटा तर्क यह है कि कोई गवाह नहीं मिल रहा है.जबकि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग यह है की महिला का यह कहना ही पर्याप्त प्रमाण है कि उसके साथ दुराचार हुआ है.फ़िर भी पुलिस गवाह तलाश रही है.महिला का यदि आज मेडिकल टेस्ट करवाया जाए तो सामूहिक दुराचार की पुष्टि हो जायेगी.मगर उन कमजोरों की बात कौन सुने? जब तक मानव अधिकार संगठन सक्रिय होंगे तब तक शरीर के निशाँ और जख्म मिट चुके होंगे.गरीब दंपत्ति के पास जलने का इलाज कराने के भी पैसे नहीं न्याय पाने के लिए कोर्ट कचहरी की बात तो बहुत दूर।

दूसरी ख़बर में दोनों बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया है ।एक बेटा माँ से तो दूसरा बाप से बिछड़ गया है.मासूम भाई जिन्होंने अभी एक दूसरे को ठीक से पहचाना भी नहीं अलग-अलग पते वाले हो गए.पति और पत्नी निश्चित रूप से नए जीवनसाथी चुनेंगे क्योंकि दोनों की उम्र अभी कुछ भी नहीं है .तब तो दोनों बच्चों का और भी बुरा हाल हो जाएगा।

तीसरी ख़बर के बारे मुझे सिर्फ़ इतना ही कहना है की यह पशु वृत्ति की याद दिलाती है.

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

तन की तिजारत के रास्ते सपनों का सौदा


दिन के अंधेरे में सपनों का सौदा.....!

यह मुम्बई है ....एक ऐसा शहर जहाँ होते हैं सपनों के सौदे और वो भी दिन के उजाले में देखे जाने वाले सपनों का। एक ऐसा सपना जो ले जाते हैं तन की तिजारत के उन अंधेरे कोने में जहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ मौत ही मिल पाती है। गर्म गोश्त के कारोबार में जो जिस्म एक बार पहुँचता है वह कब इस दुनिया से जाता है, किसी को पता ही नहीं चलता।

कोई बता सकता है की लोग चंद सिक्कों में जो मासूम देह खरीदते हैं वह आती कहाँ से और कैसे? इस सवाल का जवाब मिलेगा पश्चिम बंगाल के बागानों से, उत्तर पूर्व के पहाडों से, कश्मीर की सुनहरी वादियों से , दक्षिण भारत के समुद्री घाटों से और नेपाल के गाओं से। मुम्बई कमाठीपुरा, फारस रोड, फाकलैंड रोड और पीलाहॉउस जैसे इलाकों में जहाँ हर महीने सैकड़ों नई नाबालिग लड़कियां पहुंचाई जाती हैं। गरीबी की चक्की में पिसती ये भोली भाली दस से बारह साल की मासूम लड़कियों ने सिर्फ़ इतनी ही खता की थी की उसने अपने लिए एक बेहतर जिंदगी का सपना देख लिया था बस यही वजह थी जिसने उसे यहाँ ला खड़ा कर दिया जहाँ से खुशी का जुमला सदा सर्वदा के लिए निकाल दिया जाता है जिंदगी की डिक्शनरी से। कई तो परिवार की सताई हुई होती हैं, कई दुबई जाकर खूब ज्यादा पैसा कमाने की तमन्ना लिए होती हैं, कईयों को मुम्बई आकर फिल्मी सितारे से शादी करनी होती है या ख़ुद हेरोईन बनने का दिवास्वप्न देख रखी होती हैं।
नेपाल सीमा पर लगभग हर थाने और सोनौली तथा भैरवा ट्रांजिट कैम्प में ऐसे बोर्ड लगे हैं जिनपर नेपाल से गायब हुई ऐसी तमाम लड़कियों के फोटो चस्पा होती हैं जिन्हें दर हकीकत देह्ब्यापर की भेंट चढा दी गई होती हैं। इन तथाकथित गुमशुदा नाबालिग़ और बालिग़ लड़कियों को कभी बरामद नही किया जा सका सका है यह रिकार्ड आपको उन पुलिस थानों में मिल सकता है। अलबत्ता उन में से करीब नब्बे फीसदी लड़कियों के घर वाले जान चुके होते हैं की उनकी लाडली परदेश में कमा रही है। थानों में लगे पुराने फोटो उम्मीदों की तरह धुंधले भी होते जाते हैं। एक बार कोई बाल मन दलालों के चक्रव्यूह में फंस जाए तो वह सीधा देह की दलाली के दल दल में ही गुरता चला जाता है। फ़िर उनकी मुक्ति का कोई मार्ग भी नही होता, अलबत्ता इन बेबसों की नाम पर कई स्वयमसेवी संस्थानों वार न्यारा जरुर हो जाता है।
मोईती नेपाल के एक सदस्य (नाम नही छापने का अनुरोध किया है) के पास एक गाओं का वासी आता है और अपनी पत्नी को किसी लोगों के द्बारा बहला फुसला कर भगा ले जाने की बाबत शिकायत करता है, उसके बारे में जब तहकीक किया जाता है तो पता चलता है की उसकी बीबी मुम्बई में है और अछे खासी कमा रही है, लिहाजा उसे परेशान होने की जरुरत नही है, इस ख़बर के साथ बेचारे के हाथ में एक हजार रुपये थम्हा दिया जाता है और बताया जाता है की अब हर महीने उसे उसकी बीबी की ओर से उसे दो हजार रूपये मिलेंगे सो वह अपनी जुबान बंद ही रखे तो बेहतर। बेचारे को काफी कशमकश में दाल दिया इस हादसे ने॥ उसने अपनी हालत के मद्देनजर सब कुछ सहन कर अपने दुःख को जज्ब कर लिया। कुछ दिनों तक तो वह यूं ही खोजता फिरा फ़िर बाद में जब पता लगा की उसकी बीबी पुणे के बुधवार पता स्थित लाल बत्ती ईलाके की एक कोठे पर काजल नामक बाई के पास है तो खाद्वा के थानेपुलिस के साथ चल पड़ा अपनी बीबी को छुडाने को। जुगत काम आई और पुलिस दस्ते ने उसकी बीबी को सुरक्षित बरामद कर लिया। फ़िर वहीं दो बिछडे हुए जीवन साथी का अजीबोगरीब मिलन हुआ । पुलिस ने उसकी पाटने के साथ पाँच नेपाली दलालों को भी काबू में लिया।
कुछ गिरोह नेपाल के पहाडों और तराईओं में बसे गाँव की गरीब नाबालिग़ लड़कियों के जत्थे को मुम्बई के देह व्यापार मंडी में झोंक देते हैं। इस सन्दर्भ में कोई निश्चित आंकडा भी उपलब्ध नहीं है जिससे पता चले की कितनी लड़कियां हर साल नेपाल की तराईयों से लाकर मुम्बई में बेच दी जाती हैं? लेकिन गौर सरकारी सूत्रों की अगर मानीं तो जाहिर होता है कि चार से पांच हजार लड़कियों को बहला फुसला कर नेपाल के रस्ते इंडिया के सबसे बड़ी देह मंडी कमाठीपुरा में बेच दिया जाता है. इसमें चालीस प्रतिशत बहला फुसलाकर, तीस प्रतिशत जबरन जिसमें उनके घर और नातेदारों की सहमती होती है, और तीस प्रतिशत शौकोशान की खातिर इस दल दल में आती हैं.

रविवार, 15 फ़रवरी 2009

देश में बाल यौन शोषण

देश में बाल यौन शोषण

अब्दुल्ला अनूप -

दुनिया में बहुत बड़ी संख्या में बच्चे बाल-ब्यापार के शिकार हैं यह सर्व विदित है।देश में बाल व्यापार कानून की जद में वेश्याव्रित्त और यौन शोषण ही है , यह सत्य है की भारत के मौजूदा कानून बाल ब्यापार पर लगाम लगाने में समर्थ नहीं है शायद इसीलिये नए कानून के आवश्यकता है। दुनिया के विभीन्न हिस्सों में तो मासूमों ओ जानवरों से भी कम कीमत पर खरीदफरोख्त होता है. यानी बच्चों को एक चीज बना दिया गया है.विगत दो सालों में ट्राफिकिंग कर लाये गए करीब पौने दो हजार बच्चों को बचपन बचाओ आन्दोलन के तहत अलग अलग उद्योगों की मजदूरी से मुक्त कराया गया है. इन बाल बाल व्यापार का बढ़ता कारोबार के शिकार बच्चों को सरकार पलायित मान रही है. बाल ब्यापार में बच्चन के मान बा को थोडा बहुत पैसा देकर इस अंधकार में धकेल दिए जाने की खबर भी इन दिनिओं आम सुनने को मिलती रहती है. अपहरण और चोरी छुपे भागे हुए बच्चों, फुट पाठ और कोठं पर पैदा हुए बच्चों को तो जैसे भाग्य में ही शोषण लिखा हुआ समझा जाता है. अगर ये कोठों की अंधियारी में बिना बाप के अस्तित्व वाले बच्चे जीवन में कुछ और करने की कभी तमन्ना भे करते हैं तो बेचारी मान की दमित और कालकवलित हुई भाग्य इन्हें या तो अपनी मान या बहन की खातिर उसके गरम गोश्त के खावैयों की तलाश कर जीवन यापन करने को मजबूर होना पड़ता है.



ब्यापार की शकल में बच्चों से वेश्याव्रीत्ति भी करवाई जाते है. दर हकीकत ऐसे बच्चों को जबरन मजदूर कहना कटाई मुनासिब नहीं होगा. इन्हें अगर हम समकालीन दासता के शिकार कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं. गैर सरकारी आंकडों के अनुसार दुनिआं में हर साल बहत्तर लाख बच्चे बाल दासता के शिकार होए हैं. इसमें एक तिहाई बच्चे दक्षिण एशियाई देशों से होते हैं. भारत में सही तौर पर बाल ब्यापार में दकेले जा रहे बच्चों की कोई तःकीकी संख्या उपलब्ध नहीं है, जबकि भारत सबसे बड़ा केंद्र है बाल ब्यापार का बस यहाँ तो नेताओं की भाषणों में ही कभी कभार्या किसी एन जी ओ के सेमिनारों में तालियाँ और पुरस्कार की लिए आकर्षक आंकड़े दर्शाए जाते हैं. बाल ब्यापार के क्षेत्र में भरत श्रोत , गंतब्य और पारगमन केंद्र के रूप में काम कर रहा है. नेपाल और बंगला देश से बच्चे यहाँ लाये जाते हैं. यहाँ से बड़ी तायादात में बच्चे अरब देशों में ले जाए जाते हैं. अरब देशों में कम उम्रकी लड़कियां भी सप्लाई की जाती हैं जिनका शोषण ईय्यास और कामुक दौलतमंद शेखों के द्बारा किये जाते हैं. इनमें मुस्लिम लड़कियों की संख्या ज्यादा ओती हैं और जो मुस्लिम नहीं भी होती हैं उन्हें भी मस्लिम बनाकर पारगमन कराया जाता है. हमारी सारी सीमा सुरक्षा और देश की गरिमा कही दूर तक नहीं दीख पाती है इस आयात निर्यात को. इसके अलावा अन्य देशों में घरेलु मजदूर और जानवरों की चरवाही के लिए मासूम बच्चों को ले जाया जाता है.

देश के विभीन्न थानों में सात हजार के लगभग बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई जाती हैं इन में हर साल करीब तेईस हजार बच्चों का कोई अता पता नहीं चल पाता है जिन्हें अमूमन मृत ही समझा जा सकता है.आज अख़बारों और न्यूज़ चैनलों का न्यूज़सेंस भले ही बच्चों के अपहरण की ख़बरों पर अटका हो लेकिन सच तो यह है कि हर साल बाबन से चौबन हजार बच्चों की अपेक्षा फिरौती के लिए अप्ह्रीत किये जाने वाले बच्चों की संख्या हर साल केवल दो सौ आठ से तीन सौ चवालीस तक सिमटी रहती है. ये आंकड़े २००६ से २००८ के बीच की हैं . काबिल ये गौर है कि इतनी बड़ी संख्या में बच्चों का गम शुदा होना आखिर क्या दर्शाता है. मोटा मोटी जब बिकास की चर्चा होती है तो उस ढाँचे में सस्ते श्रम की भूमिका प्रमुख मानी जाती है, और इसके लिए बच्चों और औरतों की जरूरत महसूस की जाती है. विकास से उपजी कुंठाओं और मानसिक-शारीरिक कुरीतियों के निर्वाह के लिए भी उसे श्रम चाहिए. वह कई रूपों में श्रमिक चाहता है. सामंती काल में बच्चे बलि प्रथा के शिकार होते थे याहमारा इतिहास भी प्रमाणित करता है. कल समय में केवल दमन के रूप बदलते हैं. इस वक्त वह कई रूपों में बदला है. यदि भारत में गुमशुदा बच्चों की थानों में दर्ज संख्या को ही आधार बनाकर चलना हो तो हमें यह विश्लेषण करना चाहिए कि विकास के इस ढांचे के तहत आगे निकलने वाले सभी बच्चों काल का ग्रास में जाने वालों में सबसे आगे क्यों दीखते हैं, यह केवल एक संयोग मात्र है ? कतई नहीं, इसका मतलब है कि योजनाकारों की अनुमानित जरुरत के हिसाब से सब ठीक चल रहा है. मायानगरी मुम्बई में बीते साल सबसे ज्यादा सोलह हजार आठ सौ तेरानवे बच्चे गायब हुए यह तजा आंकडा है. कितना तरक्की कर रहे हैं हम यह मिशाल देखिये. इन गायब बच्चों में से तीन हजार का कोई अत पता नहीं चला. इससे पहले के आंकडों को देखें तो पता चलता है कि गुशुदा बच्चों की तादात विकास की तेज रफ़्तार के सात कदम से कदम मिलाते हुए सदा आगे की ओर ही उद्यत दीख रहा है. इसी तर्ज पर ऐसे बच्चों की संख्या भी बढ़ रही है जिनके गुमशुदा हुए जाने की बाद कोई अत पता चल ही नहीं सका.
सीमावर्ती राष्ट्रों के अतिरिक्त देश के विभिन्न राज्यों से भी तस्करी के जरिये जिन बच्चों को लाया जाता है उनका कई किस्म से उपयोग किया जाता है. सामाजिक व धार्मिक आधार पर वेश्याव्रीत्ति जैसे देवदासी प्रथा यौन पर्यटन अश्लील फोटो खींचने में, मासूम बच्चियों की सात यौनाचार करने के पीछे एक यह भी माना जाता है कि इस से एड्स या नामर्दगी दूर होती है. जिन परिवार में बच्चे नहीं होते हैं ऐसे परिवारों के हवाले भी मासूम बच्चों की सप्लाई किये जाने के समाचार प्राप्त होते रहते हैं. सर्कस ,नाच मंडलियाँ, बीयर बार में नर्तकियां, घुरदौर या ऊंट दौर के लिए भी बच्चों की आवश्यकता के तहत तस्करी कर इन्हें जीते जी मौत के मुहं में ठेल दिया जाना भी सत्य है. अमेरिका की ट्रेफिकिंग इन पर्सन्स के एक रिपोर्ट में भारत को स्त्री ,पुरुष व बच्चों के श्रम एवं यौन शोशा के लिए अवैध व्यापार किये जाने वाले मुख्य देश के के रूप में चिन्हित किया गया है. इसके मुताबिक भारत में मनुष्यों का अवैध कारोबार करीब ४,३८५ करोड़ रुपये का है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी पिछले सालों के रिपोर्ट में खुलासा किया है कि भारत में प्रतिवर्ष जितने बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की जाती है उसमें ३८ प्रतिशत बच्चों का कोई अत पता नहीं चल पाता है . इन लापता बच्चों को ही तस्करी के रास्ते अनैतिकता की चरमसीमा की बाहर कर दिया जाता है.

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समाज की कट्टरता और पौराणिक थोथेपन के विरुध्ध संघर्षरत हर पल पर हैरत और हर जगह पंहुच की परिपाटी ने अवरुद्ध कर दिया है कुछ करने को. करूँ तो किसे कहूं ,कौन सुनकर सबको बतायेगा, अब तो कलम भी बगैर पैरवी के स्याही नहीं उगलता तो फिर कैसे संघर्ष को जगजाहिर करूँ.