शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009

ख़ास बात

एक ख़बर-जबलपुर के निकट एक गाँव में एक दंपत्ति पर उसी गाँव के दबंगों ने हमला किया.उन्हें जिन्दा जलाने का प्रयास किया गया .अधजली हालत में जब पत्नी घर से निकलकर भागी तो आतताइयों ने उसे पकड़कर घटनास्थल के ही निकट स्थित चौराहे पर उसके साथ मर्यादाभंग का घिनौना खेल खेला.हमेशा की तरह दुर्भाग्य यह की अडोसी- पड़ोसी सभी अपने -अपने घरों में दुबककर जली हुई महिला और उसके पति की दर्दभरी चीखें सुनते रहे.इस दंपत्ति का अपराध यह था की पति ने दबंगों के ख़िलाफ़ चुनाओ लड़ने का दुस्साहस दिखाया था.

दूसरी ख़बर-पच्चीस साल का पति और बाईस साल की पत्नी .दो बच्चे -एक की उम्र पाँच साल दूसरा सवा साल का.गृह कलह के चलते दोनों किसी भी कीमत पर एक दूसरे के साथ रहने को तैयार नहीं .मामला पहुँचा जबलपुर के परिवार परामर्श केन्द्र में.लाख समझाइश के बावजूद दोनों एक दूसरे से अलग रहने की जिद पर अडे रहे .अंततः फ़ैसला हुआ.अब बड़ा बेटा पति के साथ रहेगा और छोटा माँ के साथ।

तीसरी ख़बर-दो साल तक बेटी से इश्क लड़ाने वाला आशिक अपनी होने वाली सास को लेकर भाग गया. बेटी ने थाने में रिपोर्ट लिखाई है की उसके प्रेमी और माँ के ख़िलाफ़ कार्यवाही की जाए.रिपोर्ट में बेटी ने यह भी लिखवाया है की उसका भूतपूर्व आशिक उसकी माँ के साथ शादी रचाकर बिलासपुर में रह रहा है.लड़की का दर्द यह है कि अब वह अकेली रह गई है.उसका न पिता है और न अन्य कोई भाई अथवा बहन।

मेरी आवाज़-क्या हम इंसानों की बस्ती में रह रहे हैं?क्या इन तीनों घटनाओं में पीडितों को न्याय मिल पायेगा.पहली घटना में आतताई दबंगों को आज तक गिरफ्तार नहीं किया गया है.पुलिस वालों का घिसा पिटा तर्क यह है कि कोई गवाह नहीं मिल रहा है.जबकि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग यह है की महिला का यह कहना ही पर्याप्त प्रमाण है कि उसके साथ दुराचार हुआ है.फ़िर भी पुलिस गवाह तलाश रही है.महिला का यदि आज मेडिकल टेस्ट करवाया जाए तो सामूहिक दुराचार की पुष्टि हो जायेगी.मगर उन कमजोरों की बात कौन सुने? जब तक मानव अधिकार संगठन सक्रिय होंगे तब तक शरीर के निशाँ और जख्म मिट चुके होंगे.गरीब दंपत्ति के पास जलने का इलाज कराने के भी पैसे नहीं न्याय पाने के लिए कोर्ट कचहरी की बात तो बहुत दूर।

दूसरी ख़बर में दोनों बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया है ।एक बेटा माँ से तो दूसरा बाप से बिछड़ गया है.मासूम भाई जिन्होंने अभी एक दूसरे को ठीक से पहचाना भी नहीं अलग-अलग पते वाले हो गए.पति और पत्नी निश्चित रूप से नए जीवनसाथी चुनेंगे क्योंकि दोनों की उम्र अभी कुछ भी नहीं है .तब तो दोनों बच्चों का और भी बुरा हाल हो जाएगा।

तीसरी ख़बर के बारे मुझे सिर्फ़ इतना ही कहना है की यह पशु वृत्ति की याद दिलाती है.

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

तन की तिजारत के रास्ते सपनों का सौदा


दिन के अंधेरे में सपनों का सौदा.....!

यह मुम्बई है ....एक ऐसा शहर जहाँ होते हैं सपनों के सौदे और वो भी दिन के उजाले में देखे जाने वाले सपनों का। एक ऐसा सपना जो ले जाते हैं तन की तिजारत के उन अंधेरे कोने में जहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ मौत ही मिल पाती है। गर्म गोश्त के कारोबार में जो जिस्म एक बार पहुँचता है वह कब इस दुनिया से जाता है, किसी को पता ही नहीं चलता।

कोई बता सकता है की लोग चंद सिक्कों में जो मासूम देह खरीदते हैं वह आती कहाँ से और कैसे? इस सवाल का जवाब मिलेगा पश्चिम बंगाल के बागानों से, उत्तर पूर्व के पहाडों से, कश्मीर की सुनहरी वादियों से , दक्षिण भारत के समुद्री घाटों से और नेपाल के गाओं से। मुम्बई कमाठीपुरा, फारस रोड, फाकलैंड रोड और पीलाहॉउस जैसे इलाकों में जहाँ हर महीने सैकड़ों नई नाबालिग लड़कियां पहुंचाई जाती हैं। गरीबी की चक्की में पिसती ये भोली भाली दस से बारह साल की मासूम लड़कियों ने सिर्फ़ इतनी ही खता की थी की उसने अपने लिए एक बेहतर जिंदगी का सपना देख लिया था बस यही वजह थी जिसने उसे यहाँ ला खड़ा कर दिया जहाँ से खुशी का जुमला सदा सर्वदा के लिए निकाल दिया जाता है जिंदगी की डिक्शनरी से। कई तो परिवार की सताई हुई होती हैं, कई दुबई जाकर खूब ज्यादा पैसा कमाने की तमन्ना लिए होती हैं, कईयों को मुम्बई आकर फिल्मी सितारे से शादी करनी होती है या ख़ुद हेरोईन बनने का दिवास्वप्न देख रखी होती हैं।
नेपाल सीमा पर लगभग हर थाने और सोनौली तथा भैरवा ट्रांजिट कैम्प में ऐसे बोर्ड लगे हैं जिनपर नेपाल से गायब हुई ऐसी तमाम लड़कियों के फोटो चस्पा होती हैं जिन्हें दर हकीकत देह्ब्यापर की भेंट चढा दी गई होती हैं। इन तथाकथित गुमशुदा नाबालिग़ और बालिग़ लड़कियों को कभी बरामद नही किया जा सका सका है यह रिकार्ड आपको उन पुलिस थानों में मिल सकता है। अलबत्ता उन में से करीब नब्बे फीसदी लड़कियों के घर वाले जान चुके होते हैं की उनकी लाडली परदेश में कमा रही है। थानों में लगे पुराने फोटो उम्मीदों की तरह धुंधले भी होते जाते हैं। एक बार कोई बाल मन दलालों के चक्रव्यूह में फंस जाए तो वह सीधा देह की दलाली के दल दल में ही गुरता चला जाता है। फ़िर उनकी मुक्ति का कोई मार्ग भी नही होता, अलबत्ता इन बेबसों की नाम पर कई स्वयमसेवी संस्थानों वार न्यारा जरुर हो जाता है।
मोईती नेपाल के एक सदस्य (नाम नही छापने का अनुरोध किया है) के पास एक गाओं का वासी आता है और अपनी पत्नी को किसी लोगों के द्बारा बहला फुसला कर भगा ले जाने की बाबत शिकायत करता है, उसके बारे में जब तहकीक किया जाता है तो पता चलता है की उसकी बीबी मुम्बई में है और अछे खासी कमा रही है, लिहाजा उसे परेशान होने की जरुरत नही है, इस ख़बर के साथ बेचारे के हाथ में एक हजार रुपये थम्हा दिया जाता है और बताया जाता है की अब हर महीने उसे उसकी बीबी की ओर से उसे दो हजार रूपये मिलेंगे सो वह अपनी जुबान बंद ही रखे तो बेहतर। बेचारे को काफी कशमकश में दाल दिया इस हादसे ने॥ उसने अपनी हालत के मद्देनजर सब कुछ सहन कर अपने दुःख को जज्ब कर लिया। कुछ दिनों तक तो वह यूं ही खोजता फिरा फ़िर बाद में जब पता लगा की उसकी बीबी पुणे के बुधवार पता स्थित लाल बत्ती ईलाके की एक कोठे पर काजल नामक बाई के पास है तो खाद्वा के थानेपुलिस के साथ चल पड़ा अपनी बीबी को छुडाने को। जुगत काम आई और पुलिस दस्ते ने उसकी बीबी को सुरक्षित बरामद कर लिया। फ़िर वहीं दो बिछडे हुए जीवन साथी का अजीबोगरीब मिलन हुआ । पुलिस ने उसकी पाटने के साथ पाँच नेपाली दलालों को भी काबू में लिया।
कुछ गिरोह नेपाल के पहाडों और तराईओं में बसे गाँव की गरीब नाबालिग़ लड़कियों के जत्थे को मुम्बई के देह व्यापार मंडी में झोंक देते हैं। इस सन्दर्भ में कोई निश्चित आंकडा भी उपलब्ध नहीं है जिससे पता चले की कितनी लड़कियां हर साल नेपाल की तराईयों से लाकर मुम्बई में बेच दी जाती हैं? लेकिन गौर सरकारी सूत्रों की अगर मानीं तो जाहिर होता है कि चार से पांच हजार लड़कियों को बहला फुसला कर नेपाल के रस्ते इंडिया के सबसे बड़ी देह मंडी कमाठीपुरा में बेच दिया जाता है. इसमें चालीस प्रतिशत बहला फुसलाकर, तीस प्रतिशत जबरन जिसमें उनके घर और नातेदारों की सहमती होती है, और तीस प्रतिशत शौकोशान की खातिर इस दल दल में आती हैं.

रविवार, 15 फ़रवरी 2009

देश में बाल यौन शोषण

देश में बाल यौन शोषण

अब्दुल्ला अनूप -

दुनिया में बहुत बड़ी संख्या में बच्चे बाल-ब्यापार के शिकार हैं यह सर्व विदित है।देश में बाल व्यापार कानून की जद में वेश्याव्रित्त और यौन शोषण ही है , यह सत्य है की भारत के मौजूदा कानून बाल ब्यापार पर लगाम लगाने में समर्थ नहीं है शायद इसीलिये नए कानून के आवश्यकता है। दुनिया के विभीन्न हिस्सों में तो मासूमों ओ जानवरों से भी कम कीमत पर खरीदफरोख्त होता है. यानी बच्चों को एक चीज बना दिया गया है.विगत दो सालों में ट्राफिकिंग कर लाये गए करीब पौने दो हजार बच्चों को बचपन बचाओ आन्दोलन के तहत अलग अलग उद्योगों की मजदूरी से मुक्त कराया गया है. इन बाल बाल व्यापार का बढ़ता कारोबार के शिकार बच्चों को सरकार पलायित मान रही है. बाल ब्यापार में बच्चन के मान बा को थोडा बहुत पैसा देकर इस अंधकार में धकेल दिए जाने की खबर भी इन दिनिओं आम सुनने को मिलती रहती है. अपहरण और चोरी छुपे भागे हुए बच्चों, फुट पाठ और कोठं पर पैदा हुए बच्चों को तो जैसे भाग्य में ही शोषण लिखा हुआ समझा जाता है. अगर ये कोठों की अंधियारी में बिना बाप के अस्तित्व वाले बच्चे जीवन में कुछ और करने की कभी तमन्ना भे करते हैं तो बेचारी मान की दमित और कालकवलित हुई भाग्य इन्हें या तो अपनी मान या बहन की खातिर उसके गरम गोश्त के खावैयों की तलाश कर जीवन यापन करने को मजबूर होना पड़ता है.



ब्यापार की शकल में बच्चों से वेश्याव्रीत्ति भी करवाई जाते है. दर हकीकत ऐसे बच्चों को जबरन मजदूर कहना कटाई मुनासिब नहीं होगा. इन्हें अगर हम समकालीन दासता के शिकार कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं. गैर सरकारी आंकडों के अनुसार दुनिआं में हर साल बहत्तर लाख बच्चे बाल दासता के शिकार होए हैं. इसमें एक तिहाई बच्चे दक्षिण एशियाई देशों से होते हैं. भारत में सही तौर पर बाल ब्यापार में दकेले जा रहे बच्चों की कोई तःकीकी संख्या उपलब्ध नहीं है, जबकि भारत सबसे बड़ा केंद्र है बाल ब्यापार का बस यहाँ तो नेताओं की भाषणों में ही कभी कभार्या किसी एन जी ओ के सेमिनारों में तालियाँ और पुरस्कार की लिए आकर्षक आंकड़े दर्शाए जाते हैं. बाल ब्यापार के क्षेत्र में भरत श्रोत , गंतब्य और पारगमन केंद्र के रूप में काम कर रहा है. नेपाल और बंगला देश से बच्चे यहाँ लाये जाते हैं. यहाँ से बड़ी तायादात में बच्चे अरब देशों में ले जाए जाते हैं. अरब देशों में कम उम्रकी लड़कियां भी सप्लाई की जाती हैं जिनका शोषण ईय्यास और कामुक दौलतमंद शेखों के द्बारा किये जाते हैं. इनमें मुस्लिम लड़कियों की संख्या ज्यादा ओती हैं और जो मुस्लिम नहीं भी होती हैं उन्हें भी मस्लिम बनाकर पारगमन कराया जाता है. हमारी सारी सीमा सुरक्षा और देश की गरिमा कही दूर तक नहीं दीख पाती है इस आयात निर्यात को. इसके अलावा अन्य देशों में घरेलु मजदूर और जानवरों की चरवाही के लिए मासूम बच्चों को ले जाया जाता है.

देश के विभीन्न थानों में सात हजार के लगभग बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई जाती हैं इन में हर साल करीब तेईस हजार बच्चों का कोई अता पता नहीं चल पाता है जिन्हें अमूमन मृत ही समझा जा सकता है.आज अख़बारों और न्यूज़ चैनलों का न्यूज़सेंस भले ही बच्चों के अपहरण की ख़बरों पर अटका हो लेकिन सच तो यह है कि हर साल बाबन से चौबन हजार बच्चों की अपेक्षा फिरौती के लिए अप्ह्रीत किये जाने वाले बच्चों की संख्या हर साल केवल दो सौ आठ से तीन सौ चवालीस तक सिमटी रहती है. ये आंकड़े २००६ से २००८ के बीच की हैं . काबिल ये गौर है कि इतनी बड़ी संख्या में बच्चों का गम शुदा होना आखिर क्या दर्शाता है. मोटा मोटी जब बिकास की चर्चा होती है तो उस ढाँचे में सस्ते श्रम की भूमिका प्रमुख मानी जाती है, और इसके लिए बच्चों और औरतों की जरूरत महसूस की जाती है. विकास से उपजी कुंठाओं और मानसिक-शारीरिक कुरीतियों के निर्वाह के लिए भी उसे श्रम चाहिए. वह कई रूपों में श्रमिक चाहता है. सामंती काल में बच्चे बलि प्रथा के शिकार होते थे याहमारा इतिहास भी प्रमाणित करता है. कल समय में केवल दमन के रूप बदलते हैं. इस वक्त वह कई रूपों में बदला है. यदि भारत में गुमशुदा बच्चों की थानों में दर्ज संख्या को ही आधार बनाकर चलना हो तो हमें यह विश्लेषण करना चाहिए कि विकास के इस ढांचे के तहत आगे निकलने वाले सभी बच्चों काल का ग्रास में जाने वालों में सबसे आगे क्यों दीखते हैं, यह केवल एक संयोग मात्र है ? कतई नहीं, इसका मतलब है कि योजनाकारों की अनुमानित जरुरत के हिसाब से सब ठीक चल रहा है. मायानगरी मुम्बई में बीते साल सबसे ज्यादा सोलह हजार आठ सौ तेरानवे बच्चे गायब हुए यह तजा आंकडा है. कितना तरक्की कर रहे हैं हम यह मिशाल देखिये. इन गायब बच्चों में से तीन हजार का कोई अत पता नहीं चला. इससे पहले के आंकडों को देखें तो पता चलता है कि गुशुदा बच्चों की तादात विकास की तेज रफ़्तार के सात कदम से कदम मिलाते हुए सदा आगे की ओर ही उद्यत दीख रहा है. इसी तर्ज पर ऐसे बच्चों की संख्या भी बढ़ रही है जिनके गुमशुदा हुए जाने की बाद कोई अत पता चल ही नहीं सका.
सीमावर्ती राष्ट्रों के अतिरिक्त देश के विभिन्न राज्यों से भी तस्करी के जरिये जिन बच्चों को लाया जाता है उनका कई किस्म से उपयोग किया जाता है. सामाजिक व धार्मिक आधार पर वेश्याव्रीत्ति जैसे देवदासी प्रथा यौन पर्यटन अश्लील फोटो खींचने में, मासूम बच्चियों की सात यौनाचार करने के पीछे एक यह भी माना जाता है कि इस से एड्स या नामर्दगी दूर होती है. जिन परिवार में बच्चे नहीं होते हैं ऐसे परिवारों के हवाले भी मासूम बच्चों की सप्लाई किये जाने के समाचार प्राप्त होते रहते हैं. सर्कस ,नाच मंडलियाँ, बीयर बार में नर्तकियां, घुरदौर या ऊंट दौर के लिए भी बच्चों की आवश्यकता के तहत तस्करी कर इन्हें जीते जी मौत के मुहं में ठेल दिया जाना भी सत्य है. अमेरिका की ट्रेफिकिंग इन पर्सन्स के एक रिपोर्ट में भारत को स्त्री ,पुरुष व बच्चों के श्रम एवं यौन शोशा के लिए अवैध व्यापार किये जाने वाले मुख्य देश के के रूप में चिन्हित किया गया है. इसके मुताबिक भारत में मनुष्यों का अवैध कारोबार करीब ४,३८५ करोड़ रुपये का है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी पिछले सालों के रिपोर्ट में खुलासा किया है कि भारत में प्रतिवर्ष जितने बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की जाती है उसमें ३८ प्रतिशत बच्चों का कोई अत पता नहीं चल पाता है . इन लापता बच्चों को ही तस्करी के रास्ते अनैतिकता की चरमसीमा की बाहर कर दिया जाता है.

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समाज की कट्टरता और पौराणिक थोथेपन के विरुध्ध संघर्षरत हर पल पर हैरत और हर जगह पंहुच की परिपाटी ने अवरुद्ध कर दिया है कुछ करने को. करूँ तो किसे कहूं ,कौन सुनकर सबको बतायेगा, अब तो कलम भी बगैर पैरवी के स्याही नहीं उगलता तो फिर कैसे संघर्ष को जगजाहिर करूँ.