रविवार, 22 मार्च 2009

बचपन के दिन कैसे कैसे

भाई ये हैं जनाब चोतेमियां बहुत पोज देने काशुक है इन्हेंअब देखिये जैसे ही कैमरा सामने इनके आया की मचल पड़े अपनी सूरत बदलने को

कह रहे हैं की मुझे शामिल होना है एक्कार्यक्रम में जहाँ मुझे पहननी है माला

निकल पड़े हैं पहारों की तराईयों में
कहीं भी अपनी कुर्सी नही छोरते बेचारे
थोड़ी सी बात हुई की बस संजीदे बन जाते हैं......
कुछ होते ही बड़े ही मासूमियत और सहजता से गलती भी मान लेतेहैं
चस्मा अगर आपने भी पहन ली हो तो इन्हे इस बात से भी गुरेज नही की आप इन्हे जानते हैं याप्को ये जानते
ये भी एक अदा ही है इनकी.........................
रोज सुबह जब इनकी मान नमाज पढने जागती है तो इन्हें तत्काल अखबार चाहिए
कहते हैं की अगर आप जायेंगे तो हम्युं ही रार मचाएंगे
देखिये मैं झील के करीब हूँ .....
झील
मान जा मेरे भाई बहन के साथ मनुहार करते
मान गया भैया मेरा

सोमवार, 16 मार्च 2009

सोच

इस गली की शुरुआत जीवन से होती है मगर अंत का कोई निर्धारण अभी तक कोई कर नही सका है ।
यह दिल वालों की दिल्ली है या उनकी दिल्लगी....कौन करेगा इसका निर्धारण..कहीं आप तो नहीं.............!
यह रोज यूँ ही कही सो जाना चाहता है, कभी यहाँ तो कभी वहाँ कुछ नहीं मांगता किसी से वह तो माँगता है बस अपने रुहुल कुद्दूस से लेकिन हम अपने पास कहाँ फटकने देते हैं उसे क्योंकि हमें डर है न कि कहीं यह मेरा हाल न पूछ ले....!





गुरुवार, 12 मार्च 2009

व्यक्तित्व

मेड़ता की पहचान है अमन की आवाज
जहां मीरां की वजह से मेडता विश्व विख्यात है वहीं यहां के जाये-जन्में निर्माता-निदेशक के.सी. बोकाडिया ने देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई। इसी कडी में मेडता के रहवासी एस अमन ने अपनी जादुई आवाज से देश भर में अपनी पहचान स्थापित की है। हर मंच के माध्यम से अमन का संदेश आम जन तक पहुंचाना अमन के लिए एक पवित्र मिशन की तरह है।
जिस तरह सोना आग में जलकर भी अपनी कीमत नहीं खोता है बल्कि निखर कर कु न्दन बन जाता है। ठीक उसी तरह प्रतिभाएं विपरीत हालातों से जूझते हुऐ निखरकर संवरती चली जाती है। मरूधरा राजस्थान की कई प्रतिभाओं ने राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित की है। उसी में से एक नाम एंकर एस. अमन का भी है। उनकी अपनी एक अलहदा पहचान है। ईश्वर प्रदत अपनी प्रभावी आवाज के माध्यम से अमन ने अपने नाम को सार्थक करते हुए देश के कोने-कोने में सैंकडों कार्यक्रमों के जरिए लाखों लोगों तक अमन और प्रेम का संदेश पहुंचाया है। सर्व धर्म मंच पर अमन ने अपनी उच्च स्तरीय प्रस्तुतियां दी है। अपनी दिलकश मंच संचालन शैली एवं दोस्ताना व्यवहार की बदौलत लोकप्रिय है। भूमिजा कल्चरल सोसायटी जयपुर की और से अमन अंKC Bokadia with Anchor S Amanलकरण से इन्हें विभूषित किया गया। वही मरूधर केसरी संस्थान हैदराबाद ,नोखा युवा संस्थान नोखा मण्डी जनजागरण प्रवासी संघ भायन्दर (मुम्बई) रणकेश्वर संस्थान बरनाला पंजाब, पर्ल्स ग्रुप कोटा, मारवाडी संगठन गोवाहाटी जैसी दर्जनों सस्थाओं द्वारा प्रतिभावान अमन पुरस्कृत हो चुके सांस्कृतिक कार्यक्रमो के साथ-साथ अमन को बचपन से लेखन का विशेष शौक रहा है। 6-7 वर्षो तक इन्होंने शब्बीर ताज के नाम से देश भर की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं फिल्म लेखन किया है। इनक ी लिखी गजले, कविताएं एवं आलेख समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे है। अमन न केवल एक बेहतरीन एंकर अपितु एक अच्छे कलमकार एवं भावुक शायर भी है इन्होंने जयपुर दुरदर्शन पर प्रसारित हो चुके सीरियल जीण माता में अभिनय भी किया है। अमन की जन्म स्थली सोजत सिटी है करीबन 2॰ वर्ष पूर्व अपने ननिहाल मेडता में बस गए अमन मेडता को अपनी कर्म भूमि मानते है। उनको कहना है कि उन्हें जो कुछ भी मिला मेडता की धरती से मिला है।

राजस्थान के सूर सागर

राजस्थान के सूर सागर का पुराना वैभव लौटने लगा है
बीकानेर में कभी गंदे पानी व कीचड से भरा रह कर शहर के नासूर के रूप में प्रतिष्ठा पा चुके ऐतिहासिक जूनागढ किले के पास बने सूर सागर का पुराना वैभव लोटने लगा है। स्वाधीनता दिवस 2008 तक यह तालाब रमणीक व पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो जाएगा। इसके लिए कार्य जोर शोर से चल रहा है। तालाब के समस्त कीचड को निकाल कर सफाई की गई है तथा सीढयों व बीकानेरी शैली की लाल पत्थर की पाषाण कला के अनुसार चार दीवारी का निर्माण कार्य तीव्र गति से चल रहा है।

मुख्यमंत्री श्रीमती वसुधंरा राजे की घोषणा के अनुसार इस तालाब के पुराने वैभव को लौटते देख अभी से ही स्थानीय व बाहर के लोग नियमित निहारते रहते है। तालाब के स्वच्छ जल के जलाशय बनने से आस पास के मोहल्लों के लोगों को भी बदबू की समस्या से निजात मिलेगी तथा पर्यटकों को सकून मिलेगा।
आर.यू.आई.डी.पी. के तत्वावधान में चल रहे तालाब के जीर्णोंद्धार तथा विकास कार्य को महामहिम राज्यपाल एस.के.सिंह, मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे भी दो बार देख चुकी है। जिला प्रशासन भी पूरी मुस्तैदी से इस तालाब के सौन्दर्यकरण के कार्य को करवा रहा है।
शहर की घनी आबादी में होने व इस तालाब की आगोर में लोगों के बसने से इसमें गंदा पानी आने लग गया। रियासत काल में यह रमणीक स्थल था तथा उसमें वर्षा का जल एकत्रित किया जाता था। पानी का उपयोग नागरिकों के दैनिक उपयोग एवं बिजली उत्पादन के लिए किया जाता था।
मुख्यमंत्री श्रीमती राजे के निर्देशों की पालना में आर.यू.आई.डी.पी. ने सूरसागर को उसे पुराने ऐतिहासिक स्वरूप में लाने के लिए प्रयास शुरू किये और सभी प्रकार के डिजाइन, ड्राईंग, फिजीबिलिटी रिपोर्ट, टेण्डर डॉक्यूमेंट आदि बनवाए। अभिलेख विभाग, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, सार्वजनिक निर्माण विभाग तथा महाराजा राय सिंह ट्रस्ट के पदाधिकारियों से संफ कर सन् 1922 से 1939 तक के छाया चित्र प्राप्त किए तथा कार्य प्रारंभ किया। इसके बाद ही महाराजा गंगा सिंह के समय में इमारतों में जैसी पत्थरों की रेलिंग लगाई गयी थी वैसी ही सूरसागर के किनारे पर लगाई जा रही है।
राजस्थान नगरीय आधारभूत विकास परियोजना (आर.यू.आई.डी.पी.) के अधीक्षण अभियंता के अनुसार सूरसागर को रमणीक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए लगभग छह करोड रुपये का प्रावधान रखा गया है। तालाब काकाम पूरा होने से जूनागढ,मंदिर,पार्क,फूड प्लाजा तथा मनोरंजन के लिए नाव,तैरता फव्वारा,लाइटिंग नागरिकों एवं सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहेगा। इनमें सूरसागर को भरने के लिए ट्यूब वेल का निर्माण, सूरसागर में से सीवर लाइन को हटाने तथा अन्य रास्ते पर सीवर लाइन का निर्माण कर पूर्व सिस्टम को जोडने, सूरसागर में से एस्केप चैनल को हटाने तथा अन्य रास्ते से ड्रेनेज का प्रबंध करना, सूरसागर में 50 सालों से ज्यादा समय से जमा गंदगी व सिल्ट को निकालने तथा पानी के रिसाव को रोकने के लिए लाइनिंग के कार्य, सूरसागर में ओवर फलो एवं रीसरक्यूलेशन व्यवस्था का निर्माण करने, गंदे पानी के सूरसागर में प्रवेश को समाप्त कर नई व्यवस्था से सीवर एवं ड्रेन में जोडने, सूरसागर के चारों ओर पत्थर की रैलिंग एवं सौन्दर्यकरण का कार्य, के बाद सूरसागर में फव्वारे लगाने एवं नाव चलाने आदि कार्य द्रुतगति से किया जा रहा है। शहर के पांच ट्यूबवैल के पानी से इस तालाब में 50 हजार क्यूबिक मीटर पानी से भरा जायेगा। जूनागढ के सामने तथा पम्पिंग हाउस के पास चौपाटी की तर्ज पर खुला स्थान रखा जायेगा। जहां खाने-पीने की सुविधा सुलभ होगी। तालाब में फलोटिंग फाउंटेन,एयर ब्लोयर तथा चारों तरफ लाइटिंग से साजसज्जा का काम किया जाना है।
प्रथम चरण में सूरसागर के पास कलवर्ट 11 से 12 तक डायवर्सन चैलन व सीवर लाइन का ट्रेन्चलेस विधि से निर्माण कार्य पर 197.20 लाख, सूरसागर से सिल्ट निकाल कर स्वच्छ झील बनाने के कार्य पर 315.74 लाख तथा सूर सागर झील के पुननिर्माण एवं सौन्दर्यकरण कार्य पर 96.52 लाख रुपये प्रस्तावित किए गए है।
सूरसागर के सौन्दर्यकरण के कार्य की बीकानेर के हर धर्म सम्प्रदाय तथा हर तबके के लोगों ने दिल खोलकर तारीफ की है। इतनी तारीफ बीकानेर के किसी विकास कार्य की नहीं हुई जितनी इस तालाब के कार्य के दौरान हुई है। लोग इस तालाब के रमणीक स्वरूप को देखने को बेताब है।

बुधवार, 4 मार्च 2009

कौम को तकसीम कर दिया

अब्दुल्ला

ढोंग और ढकोंसला को धर्म का नाम दे कर उनको क़ौमियत में तकसीम कर दिया गया है। हिदू धर्म, इस्लाम, धर्म, ईसाई धर्म वगैरह , जब कि धर्म सिर्फ़ एक होता है किसी वस्तु, जीव या व्यक्ति का सद गुण -जैसे काँटे (तराजू) का धर्म (सदगुण) उस की सच्ची तोल, फूल का धर्म खुशबू, साबुन का धर्म साफ़ करना और इंसान का धर्म इंसानियत। इसी धर्म का अरबी पर्याय ईमान है जिस पर इस्लाम ने कब्ज़ा कर लिया है। इस्लाम अभी चौदह सौ साल पहले आया, ईमान और धर्म इंसान की पैदाइश के साथ साथ हजारों सालों से काएम हैं। इंसान इर्तेक़ाइ मरहलों में है, ये रचना-काल समाप्त हो, ढोंग और ढ्कोंसलों का कूड़ा इसकी राह से दूर हो जाए तो ये मानव से महा मानव बन जाएगाखास कर मुस्लिम समाज जो पाताल में जा रहा है, इस को जगाना ज़रूरी है क्यूँ कि इसी में से मैं वाबिस्ता हूँ और यह ख़ुद अपना दुश्मन है। कोई इसका दोस्त नही । इस को तअस्सुब या जानिब दारी न समझा जाए, बल्कि कमज़ोर की मदद है ये।
हम बहैसियत मुसलमान इस वक्त अपने मुखालिफों के नरगे में हैं, ख्वाह वह रूए ज़मीन का कोई भी टुकडा क्यों न हो, मुस्लिम एक्तेदार में हो, या गैर मुस्लिम एक्तेदार में हो, छोटा सा गाँव हो, कस्बा हो, छोटा या बड़ा शहर हो, हर जगह मुसलमान अपने आप को गैर महफूज़ समझता है, खास कर वह मुसलमान जो वक्त के मुताबक बेहतर और बेदार समाजी ज़िन्दगी जीने का हौसला रखता है. उस के लिए दूर दूर तक खारजी और दाखली दोनों तौर पर रोड़े बिखरे हुए हैं. खारजी तौर पर देखें तो दुन्या इन मुसलमानों के लिए कोई नर्म गोशा इस लिए नहीं रखती की इन का माजी का अईना इन्तेहाई दागदार है, और दाखली सूरते हल ऐसी है कि ख़ुद इनकी ही माहोल्याती तारीकी इन्हें आठवीं सदी में ले जाना चाहती है. हर हस्सास मुसलमान अपने ऊपर मंडराते खतरे को अच्छी तरह महसूस कर रहा है. वह अपने अन्दर छिपी हुई इस की वज़ह को भी अच्छी तरह जानता बूझता है. बहुत से सवाल वह ख़ुद से करता है, अपने को लाजवाब पाता है. ख़ुद से नज़र नहीं मिला पाता, जब कि वह जानता है हल उसके सामने अपनी उंगली थमाने को तय्यार खड़ा है क्यूंकि उसके समाज के बंधन उसके पैर में बेडियाँ डाले हुए हैं. वह शुतुर मुर्ग कि तरह सर छिपाने के हल को क्यूं अपनाए हूए है? वह अपनी बका और फ़ना को किस के हवाले किए हुए है?
हमें चाहिए हम आँखें खोलें, सच्चाइयों का सामना करते हुए उनको तस्लीम कर लें. याद रखें सच्चाई को तस्लीम करना ही सब से बड़ी अन्दर कि बहादुरी है. दीन के नाम पर क़दामातों पर डटे रहना जहालत है. कल की माफौकुल-फितरत बातें और दरोग बाफियाँ आज के साइंस्तिफिक हल २+२=४ कि तरह सच नहीं हैं जदीद तरीन सदाक़तें अपने साथ नई क़द्रें लाई हैं. इन में शहादतें और पाकीज़गी है. वह माजी के मुजरिमों का बदला इनकी नस्लों से नहीं लेतें. वह काफिर की औरतों और बच्चो को मिन जुमला काफिर करार नहीं गरदान्तीं . वह तो काफिर और मोमिन का इम्तियाज़ भी नहीं करतीं. इन में इन्तेक़ाम का कोई खुदाई हुक्म भी नहीं है, न इन का कोई मुन्तक़िम खुदा है. हमें इन जदीद सदाकतों और पाकीज़ा क़दरों को तस्लीम कर लेने की ज़रूरत है. हमें तौबा इन के एहसासात के सामने आकर करना चाहिए और और हम तौबा जाने कहाँ कहाँ करते फिर रहे हैं यह नई सदाकतें, यह यह पाक क़द्रें किसी पैगम्बर की ईजाद नहीं, किसी तबके की नहीं, किसी फिरके की नहीं, किसी खित्ते की नहीं, हजारों सालों से इंसानियत के शजर के फूल की खुशबू से यह वजूद में आई है. बिला शको शुबहा इन को हर्फे-आखीर और आखिरी निज़ाम कहा जा सकता है. ये रोज़ बरोज़ और ख़ुद बखुद सजती और संवारती चली जाएंगी. इन का कोई अल्लाह नहीं होगा, कोई पैगम्बर नहीं होगा, कोई जिब्रील नहीं होगा, न कोई शैतान ये मज़हबे-इंसानियत दुन्या का आखरी मज़हब होगा, आखरी निजाम होगा. अगर सब से पहले मुसलमान इसे कुबूल करें तो इन के लिए सब से बेहतर रास्ता होगा. आज दो राहे पर खड़ी काम के लिए सही हल. दुन्या की कौमों में सफ़े-अव्वल में आने का एक सुनहरा मौक़ा और शाट कट रस्ते यही है कि वो अपनी अहमियत और खासियत को अपने नबी के बताये हुए तौर तरीकों के समेत महसूस करें उनकी पहचान अपने आप बंटी चली जायेगी

सोमवार, 2 मार्च 2009

film

भोले-शंकर : बिहार के बाद मुंबई की बारी

बिहार में शानदार कामयाबी के बाद पत्रकार से फिल्म निर्देशक बने पंकज शुक्ल की फिल्म भोले शंकर अब 20 फरवरी को मुंबई में रिलीज़ होने जा रही है। सुपर स्टार मिथुन चक्रवर्ती की ये पहली भोजपुरी फिल्म बिहार, नेपाल और दूसरे भोजपुरी भाषी क्षेत्रों में पहले ही कामयाबी के सौ दिन पूरे कर चुकी है। मुंबई में ये फिल्म दस सिनेमाघरों में एक साथ रिलीज़ होने जा रही है और इसकी एडवांस बुकिंग को लेकर दर्शकों की उत्सुकता को देखते हुए लग रहा है कि ये फिल्म मुंबई में भी कामयाबी का इतिहास दोहराएगी।
मिथुन चक्रवर्ती, मनोज तिवारी, मोनालिसा, राजेश विवेक, राघवेंद्र मुद्गल और मास्टर शिवेंदु स्टारर फिल्म भोले शंकर एक ऐसे इंसान की कहानी है, जो पूरब के एक गांव से नौकरी की तलाश में मुंबई आता है और अपने हुनर के ज़रिए नाम कमाता है। फिल्म की शूटिंग उत्तर प्रदेश और मुंबई के अलग अलग इलाकों में की गई है। इस फिल्म में मशहूर पार्श्व गायक शैलेंद्र सिंह की 20 साल बाद फिल्मों में वापसी हो रही है।
मिथुन चक्रवर्ती ने फिल्म की मुंबई रिलीज़ से पहले एक खास बातचीत में बताया कि भोले शंकर एक ऐसी फिल्म है, जिसे पूरे परिवार के साथ बैठकर देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि भोजपुरी फिल्मों का स्तर बढ़ाने के लिए भोले शंकर ने अहम भूमिका निभाई है और फिल्म की बिहार और दूसरे भोजपुरी क्षेत्रों में कामयाबी ने ये साबित कर दिया है कि ये साफ सुथरी भोजपुरी फिल्मों के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी। वहीं, फिल्म के दूसरे हीरो मनोज तिवारी जो इन दिनों लोक सभा चुनाव उम्मीदवार बनने के बाद प्रचार अभियान पर निकले हैं, ने कहा कि मुंबई के भोजपुरी दर्शक अरसे से इस फिल्म के इंतज़ार में थे। उन्होंने कहा कि भोले शंकर की कामयाबी मुंबई में भी दोहराई जाएगी। मनोज तिवारी ने भोले शंकर के संगीत को फिल्म की सबसे बड़ी खूबी बताया।
संगीतकार धनंजय मिश्रा और गीतकार बिपिन बहार के गीतों से सजी फिल्म भोले शंकर में सारेगामा के फाइनलिस्ट राजा हसन, मौली दवे, पूनम यादव और उज्जयिनी ने भी गीत गाए हैं। भोजपुरी फिल्मों की नंबर वन हीरोइन मोनालिसा ने बिहार के सासाराम से फोन पर बताया कि फिल्म भोले शंकर उनके करियर की बेहतरीन फिल्मों में से है और ये उन चुनिंदा फिल्मों में से है जिसमें नायिका को केवल खूबसूरती के लिए पेश नहीं किया गया है। मोनालिसा ने कहा कि फिल्म में उनका किरदार ग्लैमरस होने के साथ साथ कहानी के लिहाज से भी काफी अहम है और फिल्म निर्देशक पंकज शुक्ल ने इस किरदार के ज़रिए भोजपुरी फिल्मों की नायिकाओं को एक नई पहचान देने की कोशिश की है।
फिल्म भोले शंकर के निर्देशक पंकज शुक्ल ने इस मौके पर फिल्म के निर्माता गुलशन भाटिया का आभार जताया और कहा कि ये उन्हीं के सहयोग का नतीजा है कि भोले शंकर बॉक्स ऑफिस पर इतनी कामयाबी पा सकी। उन्होंने मिथुन चक्रवर्ती को यूपी, बिहार और मुंबई में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय कलाकार बताते हुए कहा कि मिथुन चक्रवर्ती ने फिल्म भोले शंकर में दोस्ती निभाने के लिए काम किया और दर्जनों भोजपुरी फिल्मों के ऑफर ठुकराते हुए फिल्म भोले शंकर के लिए उन्होंने जो सहयोग दिया वो उनकी दरियादिली का ही सबूत है।
[साभार pradhaanjee dat com]

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समाज की कट्टरता और पौराणिक थोथेपन के विरुध्ध संघर्षरत हर पल पर हैरत और हर जगह पंहुच की परिपाटी ने अवरुद्ध कर दिया है कुछ करने को. करूँ तो किसे कहूं ,कौन सुनकर सबको बतायेगा, अब तो कलम भी बगैर पैरवी के स्याही नहीं उगलता तो फिर कैसे संघर्ष को जगजाहिर करूँ.