मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

तन की तिजारत के रास्ते सपनों का सौदा


दिन के अंधेरे में सपनों का सौदा.....!

यह मुम्बई है ....एक ऐसा शहर जहाँ होते हैं सपनों के सौदे और वो भी दिन के उजाले में देखे जाने वाले सपनों का। एक ऐसा सपना जो ले जाते हैं तन की तिजारत के उन अंधेरे कोने में जहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ मौत ही मिल पाती है। गर्म गोश्त के कारोबार में जो जिस्म एक बार पहुँचता है वह कब इस दुनिया से जाता है, किसी को पता ही नहीं चलता।

कोई बता सकता है की लोग चंद सिक्कों में जो मासूम देह खरीदते हैं वह आती कहाँ से और कैसे? इस सवाल का जवाब मिलेगा पश्चिम बंगाल के बागानों से, उत्तर पूर्व के पहाडों से, कश्मीर की सुनहरी वादियों से , दक्षिण भारत के समुद्री घाटों से और नेपाल के गाओं से। मुम्बई कमाठीपुरा, फारस रोड, फाकलैंड रोड और पीलाहॉउस जैसे इलाकों में जहाँ हर महीने सैकड़ों नई नाबालिग लड़कियां पहुंचाई जाती हैं। गरीबी की चक्की में पिसती ये भोली भाली दस से बारह साल की मासूम लड़कियों ने सिर्फ़ इतनी ही खता की थी की उसने अपने लिए एक बेहतर जिंदगी का सपना देख लिया था बस यही वजह थी जिसने उसे यहाँ ला खड़ा कर दिया जहाँ से खुशी का जुमला सदा सर्वदा के लिए निकाल दिया जाता है जिंदगी की डिक्शनरी से। कई तो परिवार की सताई हुई होती हैं, कई दुबई जाकर खूब ज्यादा पैसा कमाने की तमन्ना लिए होती हैं, कईयों को मुम्बई आकर फिल्मी सितारे से शादी करनी होती है या ख़ुद हेरोईन बनने का दिवास्वप्न देख रखी होती हैं।
नेपाल सीमा पर लगभग हर थाने और सोनौली तथा भैरवा ट्रांजिट कैम्प में ऐसे बोर्ड लगे हैं जिनपर नेपाल से गायब हुई ऐसी तमाम लड़कियों के फोटो चस्पा होती हैं जिन्हें दर हकीकत देह्ब्यापर की भेंट चढा दी गई होती हैं। इन तथाकथित गुमशुदा नाबालिग़ और बालिग़ लड़कियों को कभी बरामद नही किया जा सका सका है यह रिकार्ड आपको उन पुलिस थानों में मिल सकता है। अलबत्ता उन में से करीब नब्बे फीसदी लड़कियों के घर वाले जान चुके होते हैं की उनकी लाडली परदेश में कमा रही है। थानों में लगे पुराने फोटो उम्मीदों की तरह धुंधले भी होते जाते हैं। एक बार कोई बाल मन दलालों के चक्रव्यूह में फंस जाए तो वह सीधा देह की दलाली के दल दल में ही गुरता चला जाता है। फ़िर उनकी मुक्ति का कोई मार्ग भी नही होता, अलबत्ता इन बेबसों की नाम पर कई स्वयमसेवी संस्थानों वार न्यारा जरुर हो जाता है।
मोईती नेपाल के एक सदस्य (नाम नही छापने का अनुरोध किया है) के पास एक गाओं का वासी आता है और अपनी पत्नी को किसी लोगों के द्बारा बहला फुसला कर भगा ले जाने की बाबत शिकायत करता है, उसके बारे में जब तहकीक किया जाता है तो पता चलता है की उसकी बीबी मुम्बई में है और अछे खासी कमा रही है, लिहाजा उसे परेशान होने की जरुरत नही है, इस ख़बर के साथ बेचारे के हाथ में एक हजार रुपये थम्हा दिया जाता है और बताया जाता है की अब हर महीने उसे उसकी बीबी की ओर से उसे दो हजार रूपये मिलेंगे सो वह अपनी जुबान बंद ही रखे तो बेहतर। बेचारे को काफी कशमकश में दाल दिया इस हादसे ने॥ उसने अपनी हालत के मद्देनजर सब कुछ सहन कर अपने दुःख को जज्ब कर लिया। कुछ दिनों तक तो वह यूं ही खोजता फिरा फ़िर बाद में जब पता लगा की उसकी बीबी पुणे के बुधवार पता स्थित लाल बत्ती ईलाके की एक कोठे पर काजल नामक बाई के पास है तो खाद्वा के थानेपुलिस के साथ चल पड़ा अपनी बीबी को छुडाने को। जुगत काम आई और पुलिस दस्ते ने उसकी बीबी को सुरक्षित बरामद कर लिया। फ़िर वहीं दो बिछडे हुए जीवन साथी का अजीबोगरीब मिलन हुआ । पुलिस ने उसकी पाटने के साथ पाँच नेपाली दलालों को भी काबू में लिया।
कुछ गिरोह नेपाल के पहाडों और तराईओं में बसे गाँव की गरीब नाबालिग़ लड़कियों के जत्थे को मुम्बई के देह व्यापार मंडी में झोंक देते हैं। इस सन्दर्भ में कोई निश्चित आंकडा भी उपलब्ध नहीं है जिससे पता चले की कितनी लड़कियां हर साल नेपाल की तराईयों से लाकर मुम्बई में बेच दी जाती हैं? लेकिन गौर सरकारी सूत्रों की अगर मानीं तो जाहिर होता है कि चार से पांच हजार लड़कियों को बहला फुसला कर नेपाल के रस्ते इंडिया के सबसे बड़ी देह मंडी कमाठीपुरा में बेच दिया जाता है. इसमें चालीस प्रतिशत बहला फुसलाकर, तीस प्रतिशत जबरन जिसमें उनके घर और नातेदारों की सहमती होती है, और तीस प्रतिशत शौकोशान की खातिर इस दल दल में आती हैं.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

फ़ॉलोअर

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
समाज की कट्टरता और पौराणिक थोथेपन के विरुध्ध संघर्षरत हर पल पर हैरत और हर जगह पंहुच की परिपाटी ने अवरुद्ध कर दिया है कुछ करने को. करूँ तो किसे कहूं ,कौन सुनकर सबको बतायेगा, अब तो कलम भी बगैर पैरवी के स्याही नहीं उगलता तो फिर कैसे संघर्ष को जगजाहिर करूँ.