सोमवार, 16 मार्च 2009

सोच

इस गली की शुरुआत जीवन से होती है मगर अंत का कोई निर्धारण अभी तक कोई कर नही सका है ।
यह दिल वालों की दिल्ली है या उनकी दिल्लगी....कौन करेगा इसका निर्धारण..कहीं आप तो नहीं.............!
यह रोज यूँ ही कही सो जाना चाहता है, कभी यहाँ तो कभी वहाँ कुछ नहीं मांगता किसी से वह तो माँगता है बस अपने रुहुल कुद्दूस से लेकिन हम अपने पास कहाँ फटकने देते हैं उसे क्योंकि हमें डर है न कि कहीं यह मेरा हाल न पूछ ले....!





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समाज की कट्टरता और पौराणिक थोथेपन के विरुध्ध संघर्षरत हर पल पर हैरत और हर जगह पंहुच की परिपाटी ने अवरुद्ध कर दिया है कुछ करने को. करूँ तो किसे कहूं ,कौन सुनकर सबको बतायेगा, अब तो कलम भी बगैर पैरवी के स्याही नहीं उगलता तो फिर कैसे संघर्ष को जगजाहिर करूँ.