रविवार, 22 मार्च 2009

बचपन के दिन कैसे कैसे

भाई ये हैं जनाब चोतेमियां बहुत पोज देने काशुक है इन्हेंअब देखिये जैसे ही कैमरा सामने इनके आया की मचल पड़े अपनी सूरत बदलने को

कह रहे हैं की मुझे शामिल होना है एक्कार्यक्रम में जहाँ मुझे पहननी है माला

निकल पड़े हैं पहारों की तराईयों में
कहीं भी अपनी कुर्सी नही छोरते बेचारे
थोड़ी सी बात हुई की बस संजीदे बन जाते हैं......
कुछ होते ही बड़े ही मासूमियत और सहजता से गलती भी मान लेतेहैं
चस्मा अगर आपने भी पहन ली हो तो इन्हे इस बात से भी गुरेज नही की आप इन्हे जानते हैं याप्को ये जानते
ये भी एक अदा ही है इनकी.........................
रोज सुबह जब इनकी मान नमाज पढने जागती है तो इन्हें तत्काल अखबार चाहिए
कहते हैं की अगर आप जायेंगे तो हम्युं ही रार मचाएंगे
देखिये मैं झील के करीब हूँ .....
झील
मान जा मेरे भाई बहन के साथ मनुहार करते
मान गया भैया मेरा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

फ़ॉलोअर

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
समाज की कट्टरता और पौराणिक थोथेपन के विरुध्ध संघर्षरत हर पल पर हैरत और हर जगह पंहुच की परिपाटी ने अवरुद्ध कर दिया है कुछ करने को. करूँ तो किसे कहूं ,कौन सुनकर सबको बतायेगा, अब तो कलम भी बगैर पैरवी के स्याही नहीं उगलता तो फिर कैसे संघर्ष को जगजाहिर करूँ.